#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*मन का आसन जे जीव जानै, तौ ठौर ठौर सब सूझै ।*
*पंचों आनि एक घर राखै, तब अगम निगम सब बूझै ॥*
*बैठे सदा एक रस पीवै, निर्वैरी कत झूझै ।*
*आत्मराम मिलै जब दादू, तब अंग न लागै दूजै ॥*
=================
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
.
*प्रसिद्ध साधु का अंग ३४*
.
मन माँहिं तन तैं जुदा, मन माँहिं मन दूर ।
इन्द्रियों माँहिं अलहिदा१, रज्जब साधु शूर ॥२१॥
जो शरीर में रहकर भी शरीर के दोषों से अलग रहता है, मन में रहकर भी मन के विकारों से दूर रहता है, इन्द्रियों में रहकर भी उनके विषयों के आसक्ति से अलग१ रहता है, वही शूर प्रसिद्ध साधु है ।
.
ब्रह्माण्ड पिंड मनसा१ मुकत२, सोई शिरोमणी साध ।
जन रज्जब नर नीपज्या, अविगत३ भाव अगाध ॥२२॥
जो ब्रह्माण्ड के स्वर्गादि सुखों आसक्ति से, शरीर के अध्यास से और मन के मनोरथादि१ से मुक्त२ हो गया है, वही सर्व शिरोमणि प्रसिद्ध साधु है, ऐसा जो भी नर उत्पन्न हुआ है, वह मन इन्द्रियों के अविषय३ पर ब्रह्म में अगाध भाव करके ही उत्पन्न हुआ है ।
.
मीच माँहिं स्यावत रहै, नर नारायण हेत ।
जन रज्जब ता संत की, हरि बलिहारी लेत ॥२३॥
मृत्यु के समय में भी जो नर, नारायण के प्रेम में प्रसन्न रहता है उस प्रसिद्ध संत की बलिहारी स्वयं हरि भी लेते हैं ।
.
जिहिं ठाहर१ बोले शबद, तहाँ धरे तन मन्न ।
रज्जब रहति२ कहति३ मिल, निपज्या४ साधु जन्न५ ॥२४॥
भक्ति वा ज्ञान जिस अवस्था१ के शब्द बोलते हैं, उसी में आपने तन-मन को स्थिर रखते हैं अर्थात वैसे ही धारण करते हैं, इस प्रकार धारणा२ और कथन३ दोनों मिलने पर ही प्राणी५ प्रसिद्ध साधु बनता४ है ।
.
आतम कण सु पकाइये, ब्रह्म अग्नि के माँहिं ।
अविगत१ आदम२ मुख पङै, सो फिर आवे नाँहिं ॥२५॥
जिस अन्नकण को भली भांति अग्नि पर पका के मनुष्य२ मुख में चबा कर खाता है वह दाना फिर नहीं उगता, वैसे ही जीवात्मा ब्रह्म - ज्ञानाग्नि से पक जान पर मन इन्द्रियों के अविषय१ ब्रह्म में लय हो जाता है, फिर नहीं जन्मता वही प्रसिद्ध संत कहलाता है ।
.
आतम कण सु पकाइये, ब्रह्म अग्नि के माँहिं ।
अविगत१ आदम२ मुख पङै, सो फिर आवे नाँहिं ॥२५॥
जिस अन्नकण को भली भांति अग्नि पर पका के मनुष्य२ मुख में चबा कर खाता है वह दाना फिर नहीं उगता, वैसे ही जीवात्मा ब्रह्म - ज्ञानाग्नि से पक जान पर मन इन्द्रियों के अविषय१ ब्रह्म में लय हो जाता है, फिर नहीं जन्मता वही प्रसिद्ध संत कहलाता है ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें