शनिवार, 30 जून 2018

= शूरातन का अँग(२४ - १६/८) =

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卐 सत्यराम सा 卐 
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*शूरातन का अँग २४* 
जब लग लालच जीव का, तब लग निर्भय हुआ न जाइ । 
काया माया मन तजे, तब चौड़े१ रहे बजाइ ॥१६॥ 
जब तक साधक को अहँकार और शूर को शरीर जीवित रखने का लालच है, तब तक निर्भय नहीं हुआ जाता और जब मन शरीराध्यास तथा माया की आसक्ति त्याग देता है तब साधक अपना अनाहत नाद बजाकर अहँकारादि को नष्ट करने के लिये साधन - क्षेत्र में, और शूर अपना शँख बजाकर शत्रुओं को नष्ट करने के लिये युद्ध - क्षेत्र के मैदान१ में, आ डटता है ।
दादू चौड़े में आनन्द है, नाम धर्या रणजीत । 
साहिब अपना कर लिया, अंतरगत की प्रीति ॥१७॥ 
युद्ध के मैदान में युद्ध करने से निर्भयता का आनन्द रहता है । लोग रणजीत नाम धरते हैं तथा उसका स्वामी भी उसके हृदय की प्रीति को पहचान कर उसे अपनाता है । वैसे ही साधक को पक्षपात तथा लोक - लाज रहित प्रत्यक्ष में साधन करने से आनन्द रहता है और लोग उसका भक्त तथा सँत नाम धरते हैं और परमात्मा उसके हृदय की प्रीति को पहचान कर उसे अपनाते हैं । 
दादू जे तुझ काम करीम सौं, तो चौहट चढ़ कर नाच । 
झूठा है सो जाइगा, निहचै रहसी साच ॥१८॥ 
यदि तुझे ईश्वर - मिलन से ही काम है तो अन्त:करण - चतुष्टय रूप बाजार के चौक के विषयाकार - वृत्ति रूप स्थान के ऊपर चढ़कर अर्थात् विषयाकार वृत्तियों को दबा कर भगवद् - भक्ति रूप नृत्य कर, फिर भक्ति का अभ्यास बढ़ने पर अन्त:करण में जो मिथ्या विषयों का राग है वह अपने आप चला जायगा और सत्य परमात्मा का चिन्तन अन्त:करण में निश्चयपूर्वक निरन्तर रहेगा तथा ईश्वर प्राप्त होगा । 
(क्रमशः)

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