शनिवार, 30 जून 2018

= सद्गति सेझे का अंग ३८(१६-८) =

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卐 सत्यराम सा 卐
*जो कुछ बेद कुरान थैं, अगम अगोचर बात ।*
*सो अनुभै साचा कहै, यहु दादू अकह कहात ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*सद्गति सेझे का अंग ३८*
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रज्जब वेद कुरान गहि, जूझन१ आये शूर । 
ज्ञानी अनुभव गजा३ गहि, मार किये चकचूर२ ॥१६॥ 
परमार्थ मार्ग में हिन्दू वेद रूप शस्त्र और मुसलमान कुरान रूप शस्त्र लेकर युद्ध१ करने आये हैं किन्तु ज्ञानी संतों ने तो अनुभव रूप महान शिला३ ग्रहण करके उसकी मार से अज्ञान तथा आसुर गुणों का चूर्ण२ कर डाला है । 
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रज्जब तुरकी तीर है, वेद बनण की धार । 
अनुभव वहणी गैब१ गजु२, त्यों त्यों करै सुमार ॥१७॥ 
मुसलमानों की कुरान बाण है, वेद उसकी धार के समान है और ज्ञानी संतों की अनुभव वाणी महान गुप्त१ शिला२ के समान है, वह जिधर से पड़े ऊधर से ही मारती है और ज्यों ज्यों अनुभव बढ़ता जाता है त्यों त्यों भली प्रकार अज्ञानादि पर आधात करती है, भाव यह है - वेद तथा कुरान से अनुभव अधिक है । 
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रज्जब रहता गढ़पति, बहतों माँड्या घेर । 
उक्ति अलेखै गिज१ चलै, बहुत मुये इस फेर२ ॥१८॥ 
गढ़पति पर बाहर के शत्रु घेरा डालते हैं तथा गढ़पति की मार से बहुत मरते हैं, वैसे ही ब्रह्म में स्थित ज्ञानी को चंचल स्वभाव अज्ञानी पंडित शास्त्र चर्चा से घेर लेते हैं तब ज्ञानी की लेखबद्ध न होने वाले निरंजन ब्रह्म विषयक युक्ति और उक्तियों रूप महान् शिलाऐं चलती हैं । और इस ब्रह्म विचार रूप भावना में आकर बहुत अज्ञानी पंडित जीवमुक्त हुये हैं । 
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इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित सद्गति सेझे का अंग ३८ समाप्त । सा. १२९३ ॥
(क्रमशः)

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