शुक्रवार, 1 जून 2018

= पूरबी भाषा बरवै(ग्रन्थ ३८/३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
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*= पूरबी भाषा बरवै(ग्रन्थ ३८) =*
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*कुम्भ भरल संपूरन निर्मल नीर ।*
*पंखि तिसाई गइले सागर तीर ॥३॥*
जिस जीवन्मुक्त महात्मा ने अपना घड़ा(शुद्ध अन्तःकरण) निर्मल जल(परम तत्व के ज्ञान) से भर रखा है, परन्तु प्यासे पक्षी(उसकी इन्द्रियाँ) अपनी प्यास बुझाने(प्रारब्ध भोग) के लिये सागर(बाह्य जगत्) के तट पर विचराती हो ॥३॥
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*गंग जमुन दोउ बहइय तीक्षण धार ।*
*सुमति नवरिया बैसल उतरब पार ॥४॥*
जिस(योगी) की गंगा-यमुना(इड़ा-पिंगला) दोनों नदियाँ(नाड़ियाँ) तीक्ष्ण धार में बहती हो, परन्तु वह सुमति(योगाभ्यास गाभ्यास) रूपी नाव(सुषुम्णा) के सहारे चित्तवृत्तियाँ निरुद्ध कर परम तत्व का साक्षात्कार कर लेता है ॥४॥
(क्रमशः)

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