गुरुवार, 21 जून 2018

= शूरातन का अँग(२४ - १/३) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
जीवित - मृतक अँग के अनन्तर सँत - शौर्य का विचार करने के लिये "सूरातन का अँग" कहने में प्रवृत हुये मँगल कर रहे हैं ~ 
दादू नमो नमो निरंजनँ, नमस्कार गुरुदेवत: । 
वन्दनँ सर्व साधवा, प्रणामँ पारँगत: ॥१॥ 
जिनकी कृपा से साधक साधन करने की कायरता से पार होकर, आसुरी गुण तथा अज्ञान को नष्ट करने में शूरता दिखाता हुआ परब्रह्म को प्राप्त होता है, उन निरंजन राम, सद्गुरु और सर्व सँतों को हम अनेक प्रणाम करते हैं । 
*शूर, सती, साधु निर्णय*
साचा सिर सौं खै लहै, यह साधू जन का काम ।
दादू मरणा आसंघे, सोई कहेगा राम ॥२॥
२ - ४ में सँत शूर का परिचय दे रहे हैं, जैसे युद्ध में शूरवीर के लिए अपना शिर देकर(खै=) रण क्षेत्र की मिट्टी में(लहै=मिलना) मरना स्वर्ग को प्राप्त करता है, सती सहर्ष पति के साथ चिता में जलती है तब पति - लोक को प्राप्त होती है, वैसे ही सच्चा सँत अपना अहँकार रूप शिर काट कर ब्रह्म को प्राप्त होता है । यह सँतजन का ही विशेष कार्य है, शूरसती का नहीं । अत: जो जीवितावस्था में ही मृतक सम निर्द्वन्द्व होना स्वीकार करेगा, वही सँत निरंजन राम का भजन करके उसे पायेगा ।
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राम कहैं ते मर कहैं, जीवित कह्या न जाइ । 
दादू ऐसैं राम कह, सती शूर सम भाइ ॥३॥ 
जो निरंजन राम का भजन करते हैं, वे जीवितावस्था में मृतक सम होकर ही करते हैं । अहँकार के जीवित रहने पर वास्तविक भजन नहीं किया जाता । अत: जैसे सती और शूर मरण को प्रिय समझ कर पति - लोक तथा स्वर्ग - लोक में जाते हैं, वैसे ही तुम भी अहँकार को नष्ट करने को प्रिय समझ कर भजन करो, तभी राम को प्राप्त कर सकोगे ।
(क्रमशः)

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