गुरुवार, 21 जून 2018

= पृथ्वी पुस्तक का अंग ३७(१-४) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*ब्रह्मंड हंड चढ़ाइया, मानौं ऊरे अन ।*
*कोई गुरु कृपा तैं ऊबरे, दादू साधू जन ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*पृथ्वी पुस्तक का अंग ३७*
इस अंग में पृथ्वी ही पुस्तक रूप है ऐसा विचार कर रहे हैं ~ 
रज्जब वसुधा वेद सब, कुल आलम सु कुरान । 
पंडित काजी वै१ बड़े, दफतर दुनिया जान ॥१॥ 
यह सब पृथ्वी ही वेद है, और संपूर्ण संसार ही कुरान है, बड़े बड़े पंडित तथा काजी ही इनको बेचने१ वाले हैं, यह दुनिया ही उनका दफ्तर समझो । 
सृष्टि शास्त्र हैं सही, वेत्ता करैं बखान । 
रज्जब कागज क्या पढे, पृथ्वी पुस्तक जान ॥२॥ 
जरायुज, अंडज, उद्भज, स्वदेज, यह चार प्रकार की सृष्टि ही यथार्थ शास्त्र है, ज्ञानीजन इनके गुण धर्मादि का व्याख्यान करते हैं । हे साधक ! कागजों को क्या पढ़ता है ? कागजों में तो पृथ्वी में स्थित प्रणियों की ही बातें आई हैं, अत: पृथ्वी के उक्त चार प्रकार के प्राणियों को ही पुस्तक के पेज समझकर पढ़ और उनकी श्रेष्ठता को धारण कर तथा हीनता को त्याग । 
ब्रह्म वेद ब्रह्माण्ड यहु, कीया सकल कुरान । 
रज्जब मांड मुसाफ१ को, बाँचें जान सुजान ॥३॥ 
ब्रह्म ने यह ब्रह्माण्ड ही वेद तथा कुरान रचा है किन्तु ब्रह्माण्ड वेद के संत रूप पेज को सर्व मित्र१ जानकर बुद्धिमान ही पढ़ते हैं अर्थात ग्रहण करते हैं । 
रज्जब कागद कुंभिनि१, आतम अक्षर रूप । 
ब्रह्म वेद वेत्ता२ पढैं, अकलि३ सु अजब अनूप ॥४॥ 
पृथ्वी१ ही जिसका कागज है और जिसमें जीवात्मा रूप आक्षर लिखे हैं, ऐसे ब्रह्मांडरूप ब्रह्म के वेद को, जिनकी बुद्धि३ अद्भुत और अनुपम है, वे ज्ञानी२ ही पढ़ते हैं अर्थात संसार की प्रत्येक वस्तु वा जीवात्मा से शिक्षा ग्रहण करते हैं ।
(क्रमशः)

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