शुक्रवार, 29 जून 2018

= सद्गति सेझे का अंग ३८(१३-१५) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*ज्ञानी पंडित बहुत हैं, दाता शूर अनेक ।*
*दादू भेष अनन्त हैं, लाग रह्या सो एक ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*सद्गति सेझे का अंग ३८*
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ज्यों दीपक राग रज्जब करै, त्यों तन सेझे ज्ञान । 
तहां बहु वह्नी१ बैन लेहिं, हौं हिं न एक समान ॥१३॥ 
दीपक राग गाया जाता है वहां भी श्रोता अग्नि१ और वचन बहुत लेते हैं, वैसे ही संत शरीर से ज्ञान का सेझा निकलता है, वहां भी श्रोता ज्ञानाग्नि और वचन बहुत लेते हैं, किन्तु दोनों एक जैसे नहीं होते, दीपक राग का अग्नि दाहक होता है और वचन मुक्ति दाता नहीं होता । ज्ञानाग्नि शांतिप्रद होता है, वचन मुक्ति-प्रदाता होते हैं, यह भेद रह जाता है । 
गैलै गोला न चले, गोला गैला होय । 
रज्जब ढाहे बुरज को, फिर मुहरा१ दे२ सोय ॥१४॥ 
तोप का गोला मार्ग से नहीं चलता, गोले से मार्ग बन जाता है, वह किले की बुराज गिरा देता है, फिर सामने१ होकर आगे पैर२ देता है वही वीर राज्य पाता है, वैसे ही ज्ञान-कर्म मार्ग से नहीं चलता, जहां ज्ञान का उपदेश होता है, वही परमार्थ मार्ग खुल जाता है, उस मार्ग से आगे बढ़कर साधक अज्ञान को जय करके ब्रह्म को प्राप्त करता है । 
तुरकी तेग१ कुरान है, श्रुति२ हिन्दू हथियार । 
जन रज्जब अनुभव गुरज, जा के दह३ दिशि धार ॥१५॥ 
मुसलमानों की तलवार१ कुरान है हिन्दुओं का हथियार वेद२ है और ज्ञानियों का शास्त्र अनुभव रूप गुर्ज(गदा) है जो दशों३ दिशाओं में अर्थात सभी और मार करता है ।
(क्रमशः)

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