#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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(५)
*ये तहां झूलहि संत सुजान सरस हिंडोलवा ॥(टेक)*
सुखदायक हिंडौला : (झूले के रूपक से काया एवं आत्मा का वर्णन) ।
अरी ! बुद्धिमान् संत ऐसे सुखद हिंडोले(झूले) में झूल कर बहुत सुख मानते हैं ॥टेक
*जत सत दोउ षंभ वरे श्रद्धा भूमि बिचारि ।*
*क्षमा दया धृति दीनता ये सषि सोभित डांडी चारि ॥१॥*
यम नियम एवं सत्य जिस झूले के स्तम्भ हों; भगवान् एवं भक्तों के प्रति श्रद्धा ही जिसकी भूमि हो; क्षमा, दया, धैर्य एवं दीनता(विनय) - ये चार जिसके दण्ड हों ॥१॥
*उत्तम पटली प्रेम की रे डोरी सुरति लगाइ ।*
*भईया भाव झुलवई ये सषि हरषि हरषि गुन गाइ ॥२॥*
प्रेम जिसकी उत्तम पटली(काष्ट पट्ट) है और सुरति ही रस्सी(डोर) है । सखी या भाई एवं भाभी जिसे अतिशय प्रसन्नता से प्रशंसापूर्वक झुला रही हों ॥२॥
(क्रमशः)
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