मंगलवार, 26 जून 2018

= शूरातन का अँग(२४ - १०/१२) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*शूरातन का अँग २४* 
जे मुझ होते लाख शिर, तो लाखों देती वारि । 
सह१ मुझ दिया एक शिर, सोई सौंपे नारि ॥१०॥ 
यदि मेरे लाख शिर होते तो मैं लाखों के लाखों शिर ही परमात्मा पर निछावर कर देती, किन्तु उस समर्थ प्रभु ने मुझे एक ही शिर साथ१ में दिया है अत: मैं सँत रूप पतिव्रता सुन्दरी उसे भी उसी को समर्पण करती हूं ।
सती जल कोयला भई, मुये मड़े की लार । 
यों जे जलती राम सौं, सांचे संग भरतार ॥११॥ 
अनेक सती नारियां मरे हुये पतियों के साथ जलकर कोयला हो गई हैं । ऐसे यदि जीवात्मा सच्चे स्वामी राम की विरहाग्नि में जलती तो राम को प्राप्त होकर रामरूप ही हो जाती । 
मुये मड़े से हेत क्या, जे जिव की जाने नाँहिं । 
हेत हरी सौं कीजिये, जे अन्तरजामी माँहिं ॥१२॥ 
जो हृदय की प्रीति को नहीं जानता, उस मरे हुये मुर्दे से प्रेम करने से क्या लाभ है ? पूर्ववत् जन्म - मरण रूप सँसार ही प्राप्त होगा । जो हृदय के प्रेम को जानने वाला अन्तर्यामी परमात्मा तुम्हारे भीतर ही स्थित है उससे प्रेम करो, तुम्हें मुक्ति पद प्राप्त होगा । 
(क्रमशः)

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