बुधवार, 13 जून 2018

= विचार का अंग ३६(१३-१६) =

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*दादू एक विचार सौं, सब तैं न्यारा होइ ।*
*मांहि है पर मन नहीं, सहज निरंजन सोइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*विचार का अंग ३६*
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काया माया मांड१ सौं, मुक्ता करे विवेक । 
ताले तीनों लोक को, रज्जब कूँची एक ॥१३॥ 
देहाध्यास, माया की आसक्ति, और ब्रह्माण्ड१ की सीमा से विवेकपूर्वक विचार ही मुक्त करता है, त्रिलोक रूप ताले को खोलने के लिये भी एक विचार ही ताली है अर्थात विचार ही त्रिलोक की आसक्ति से मुक्त करता है । 
रज्जब वाइक१ वाजि२ पर, जानराइ३ असवार । 
ताके वश वसुधा सभी, ता में फेर न सार ॥१४॥ 
वचन१ रूप अश्व२ पर विचारमान३ रूप असवार बैठा है, सभी पृथ्वी के प्राणी उस विचारवान् के आधीन हैं किन्तु उसके सार सिद्धान्त में कुछ भी परिवर्तन नहीं होता । 
चित चेतन छाजा अगम१, बैठे ज्ञान विचार । 
रज्जब रामति राम का, सो देखे दीदार ॥१५॥ 
मन इन्द्रियों के अविषय१ चेतन-महल के चित्त रूप छाजे पर ज्ञान - विचार स्थित है, वह प्राणी राम की विहार स्थली को तथा राम के स्वरूप को भी संशय विपर्य्यय रहित देखता है । 
रज्जब ज्ञान विचार गृह, जाप जिकर ठहराय । 
जैसे भोढ़ल के भुवन, दीवा बुझ नहिं जाय ॥१६॥ 
जैसे भोढ़ल के घर में दीपक ठहरता है, वायु से नहीं बुझता, वैसे ही ज्ञान-विचार का घर जो हृदय है वा ज्ञान-विचार ही घर है उस घर में ब्रह्म-चिन्तन तथा ब्रह्म-चर्चा ठहरती है, अश्रद्धा से नष्ट नहीं होती ।
(क्रमशः)

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