🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= पूरबी भाषा बरवै(ग्रन्थ ३८) =*
*रस महिया रस होइ हि नीर हि नीर ।*
*आतम मिलि परमातम खीर हि खीर ॥१८॥*
(अब महाकवि तीन उदाहरणों से उस तादात्म्य का वास्तविक स्वरूप बता रहे हैं --) जैसे रस में रस मिलकर एकरूप हो जाता है(उसमें कोई भेद नहीं कर पाता), जल में जल मिलकर एकरूप हो जाता है, दूध में दूध मिलकर एकरूप हो जाता है; इसी तरह यह आत्मा परमात्मा के साथ मिलकर एक(अभिन्न) हो जाता है ॥१८॥
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*सरिता मिलइ समुद्रहिं भेद न कोइ ।*
*जीव मिलइ परब्रह्महि ब्रह्मइ होइ ॥१९॥*
जैसे नदी(का जल) समुद्र में मिल एक हो जाती है, उन दोनों के जलों में कोई भेद नहीं रह जाता; इसी तरह जीवात्मा परब्रह्म से मिलकर ब्रह्मरूप हो जाता है । उसका जीव-अंश ब्रहमांश में लीन हो जाता है ॥१९॥
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*इह अध्यातम जानहुं गुरु मुख दीस ।*
*सुंदर सरस सुनावल बरबै बीस ॥२०॥*
॥ समाप्तोऽयं पूरबी भाषा बरबै ग्रन्थः ॥३७॥
महाराजश्री कहते हैं - यह अध्यात्म(आत्मविषयक) गूढ़ तत्व, जिसका ऊपर वर्णन किया गया है, मैंने स्वयं अपने गुरुदेव से साक्षात् उपदेश द्वारा पाया है । इसी को मैंने साधारणजनों के लिये(करुणापरवश होकर कि वे भी इसे ग्रहण कर लें) इन ललित वरवै नामक छन्दों के माध्यम से सुना दिया है ॥२०॥
*॥ पूरबी भाषा बरवै ग्रन्थ समाप्त ॥*
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*॥ इति श्री स्वामी सुन्दरदास बिरचित ३७ लघु ग्रन्थ संपूर्ण ॥ *
(“सर्वांगयोगप्रदीपिका” ग्रन्थ से “पूर्वी भाषा बरवै” तक)(सैंतीस लघुग्रन्थों की सर्व् संख्या १२१६) स्वामी श्री सुन्दरदास जी के ३७ लघु ग्रन्थ समाप्त ॥ इन उपर्युक्त ३७ लघु ग्रन्थों में आये समग्र छन्दों की गणना १२१६(एक हजार दो सौ सोलह) है ॥
(क्रमशः)
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