#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू एक विचार सौं, सब तैं न्यारा होइ ।*
*मांहि है पर मन नहीं, सहज निरंजन सोइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*विचार का अंग ३६*
इस अंग में विचार की विशेषता आदि का वर्णन कर रहे हैं ~
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रज्जब सत्य विचार सौं, पारंगत ह्वै प्राण ।
सो समझाया सद्गुरु, समझ्या शिष्य सुजाण ॥१॥
यथार्थ विचार के बल से प्राणी विद्वान् होकर संसार से पार हो जाता है, वही विचार सद्गुरुओं ने समझाया है किन्तु कोई बुद्धिमान शिष्य ही उस रहस्यमय विचार को समझ सका है ।
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रज्जब इहि संसार में, वोहित१ बड़ा विवेक ।
जो बैठे सो उद्धरे२, युग युग प्राणि अनेक ॥२॥
इस संसार-सागर में विवेकपूर्वक विचार ही बड़ा जहाज१ है, प्रति युग में जो जो इस विचार रूप जहाज में बैठे हैं, वे अनेक प्राणी संसार-सागर से पार हुये२ हैं ।
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काया माया मांड सौ, काढे अकलि१ विचार ।
रज्जब राखे जीव को, सन्मुख सिरजनहार ॥३॥
विचारपूर्वक बुद्धि१ ही जीव को शरीर, माया और ब्रह्माण्ड से निकालकर सृष्टिकर्त्ता परमेश्वर के सन्मुख रखती है अर्थात ब्रह्म परायण करती है ।
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देखो सूक्ष्म स्थूल को, व्यौरै बुद्धि विचार ।
रज्जब रज तज काढ़हिं, नमो अकलि१ व्यवहार ॥४॥
देखो, विचारयुक्त बुद्धि स्थूल-सूक्ष्म शरीर को आत्मा से अलग करती है तथा अविद्या रूप रज का त्याग करके जन्मादि प्रवाह से निकलती है, अत: विचारयुक्त बुद्धि१ के व्यवहार को हम नमस्कार करते हैं ।
(क्रमशः)
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