शुक्रवार, 22 जून 2018

= पृथ्वी पुस्तक का अंग ३७(५-८) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*पंच ऊपना शब्द तैं, शब्द पंच सौं होइ ।*
*सांई मेरे सब किया, बूझै विरला कोइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*पृथ्वी पुस्तक का अंग ३७*
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चतुर१ खानि की काया कागज, आतम अक्षर माँहिं । 
यह पुस्तक कोउ विरला बाँचे, घट घट समझ सु नाँहिं ॥५॥ 
जरायुज, अंडज, स्वेदज, उदिभज, इन चार१ खानि के जो शरीर है वे ही कागज है, उनमें जीवात्मा है, वे ही अक्षर है, यह जो ऐसी पुस्तक है, इसे कोई दत्तात्रेय के समान विरला पुरुष ही पढ़ता है । इसको पढ़ सके ऐसी सुन्दर बुद्धि प्रत्येक शरीर में नहीं होती । दत्तात्रेयजी ने २४ सांसारिक प्राणियों से ही शिक्षा ली थी यह पुराण में प्रसिद्ध है । 
कागद काया कुंभिनी१, दफ्तर दुनी२ दिवान३ । 
रज्जब आलम४ इल्म५ यहु, समझे सोउ सुजान ॥६॥ 
पृथ्वी१ के शरीर ही कागज है, दुनिया२ ही दफ्तर है, ईश्वर ही मंत्री३ है, संसार की विविध अवस्था४ ही ज्ञान५ है, इस पुस्तक को समझता है वही ज्ञानी है । 
प्राण१ पिंड ब्रह्माण्ड तैं, उपजे च्यार्यों वेद । 
ये रज्जब मुर२ मूल है, भेदी३ पावे भेद४ ॥७॥ 
जीवात्मा१ शरीर और ब्रह्माण्ड इनमें ही चारों वेदों की उत्पत्ति हुई है अर्थात वेदों में उक्त तीन की उत्पत्ति, रक्षा, विनाश, गुण-धर्म और मुक्ति आदि का ही वर्णन है, अत: ये तीन२ ही वेदों के मूल कारण हैं । रहस्य को जानने वाले३ ज्ञानी ही इस रहस्य४ को जान पाते हैं । 
पंच तत्त्व पुस्तक मई१, जिनमें नाना भेद । 
रज्जब पंडित प्राणि सो, जो बाँचे यहु वेद ॥८॥ 
जिसमें कार्य रूप इन्द्रियादि नाना भेद दिखाई देते हैं, वे आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी पांचो तत्त्व वेद की पुस्तक रूप१ हैं, इस पुस्तक को जो पढ़ता है अर्थात उक्त पंच तत्त्व और उनके कार्य तथा उनमें व्यापक चेतन को यथार्थ रूप से समझता है वही प्राणी पंडित है ।
(क्रमशः)

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