#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
.
*जीव कहै काया सुनौ तो महिं बहुत बिकार वे ।*
*हाड मांस लौहू भरी मज्जा मेद अपार वे ॥*
*इक मेद मज्जा बहुत तोमैं चरम ऊपर लाइया ।*
*जा घरी हम होंहि न्यारे सवैं देषि घिनाइया ॥*
*घिन करैं सबकौ देषि तो कौं नांक मूंदै जन जनौं ।*
*सुन्दरदास सुबास हमतैं जीव कहै काया सुनौं ॥६॥*
६. *जीव* : तुम अनेक मलिन(गन्दी) वस्तुओं के संग्रह मात्र हो । तुम हड्डी, मांस, रक्त, मज्जा एवं मेद आदि अनेक धातुओं(शरीर धारक द्रव्यों) के संग्रह मात्र हो । सुन्दरता दिखाने के लिये उन पर चर्म लपेट दिया गया है । उसे हम से पृथक् रख दिये जाने पर, उससे सभी लोग घृणा करने लगते हैं । इस प्रकार, सब कोई तुम को उस अवस्था में देख कर घृणा करते हुए, अपनी नासिका को हाथ या वस्त्र आदि से ढकते हुए दूर भागते हैं । इस शरीर में सुगन्ध तो तभी तक रहती है जब तक इसमें प्राण स्थित रहते हैं ॥६॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें