#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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*देह कहै सुनि प्रांनियां तेरै ठौर न ठांव वे ॥*
*लेत हमारौ आसिरौ धरत हमहीं को नांव वे ॥*
*तूं नांव कैसैं धरत हम कौं बात सुनिये एक वे ।*
*जा हांडी मैं षाइ चलिये ताहि न करिये छेक वे ॥*
*अब छेक कियें नाहिं सोभा करि हमारी कांनियां ।*
*सुन्दरदास निवास हममैं देह कहै प्रांनियां ॥७॥*
७. *देह* : अरे प्राण ! तुम्हें अपनी स्थिरता के लिए न कोई स्थिति है न स्थान ! तुम को तो एकमात्र हमारा ही सहारा है । तुम को उस समय केवल हमारा ही नाम याद आता है । उस समय भी हम ही तुमको याद आते हैं तो तुम यहाँ हमारी एक बात मान लो कि जिस पात्र में खाना हो उसमें छेद नहीं करना चाहिये । यह ऐसा ‘जिसमें खाये उसी में छेद करना’ तुम को शोभा नहीं देता । कुछ तो हमारा भी संकोच मानो । अरे ! तुम्हारा स्थिति स्थान एकमात्र हम पर ही आश्रित है ॥७॥
(क्रमशः)
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