#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*जीवित मृतक का अँग २३*
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जे जन आपा मेट कर, रहे राम ल्यौ लाइ ।
दादू सब ही देखताँ, साहिब सौं मिल जाइ ॥२७॥
जो साधक अपने साँसारिक अहँकार को नष्ट करके प्रतीति मात्र सेवक - स्वामी रूप अहँकार से निरँतर अपनी वृत्ति निरंजन राम में लगाते हैं, वे अनासक्ति भाव से सबको देखते हुये वो सबके देखते - देखते ही परब्रह्म को प्राप्त हो जाते हैं ।
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*दीनता - गरीबी*
गरीब गरीबी गह रह्या, मस्कीनी मस्कीन ।
दादू आपा मेट कर, होइ रह्या लै लीन ॥२८॥
प्रसंग आमेर नरेश मानसिंह ने प्रश्न किया था, गरीबदास तथा मस्कीनदास नाम आपके शिष्यों के क्यों रक्खे गये हैं ? २८ में उसी का उत्तर दे रहे हैं, गरीबदास गरीबी और मस्कीनदास मिस्कीनी(दीनता) ग्रहण करके सब प्रकार का अहँकार हटा कर परब्रह्म में वृत्ति लगाकर लीन हो रहे हैं, इसीलिए रक्खे गये हैं ।
(क्रमशः)
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