#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= २. राग माली गौडी =*
.
(३)
(ताल रूपक)
*ब्रह्म ज्ञान बिचारि करि ज्यौं होइ ब्रह्म स्वरूप रे ।*
*सकल भ्रम तम जाय मिटि उर उदित भान अनूप रे ॥(टेक)*
महात्मा उपदेश करते हैं - अरे साधक तूँ निरन्तर ब्रह्म का चिन्तन कर । इसी चिन्तन के माध्यम से तूँ ब्रह्मरूप हो पायगा । तब तेरे तन के अन्य सभी सांसारिक भ्रम एवं तेरा अज्ञानान्धकार उसी रूप से नष्ट हो जायगा जैसे सूर्य के उदय होने पर लोक का अन्धकार नष्ट हो जाता है ॥टेक॥
*यह दूसरौ करि जबहिं देषै दूसरौ तब होइ रे ।*
*फेरि अपनी दृष्टि ही कौं दूसरौ नहिं कोई रे ॥१॥*
यह तुम्हारी दृष्टि का ही दोष है कि तुम अपने मन में द्वैतभाव की कल्पना कर लेते हो तो तुम को संसार में द्वैत दिखायी देता है । यदि तुम अपनी दृष्टि(चिन्तन) में परिवर्तन कर लो और तुम यहाँ सर्वत्र उस व्यापक ब्रह्म परमात्मा को ही देखो तो तुम्हारा यह दृष्टिभ्रम सर्वथा नष्ट हो जाय । तब तुम्हे यहाँ किसी का द्वैत का भान नहीं होगा ॥१॥
*दिबि दृष्टि करि जब देषिये तब सकल ब्रह्म बिलास रे ।*
*अज्ञान तें संसार भासै कहत सुन्दरदास रे ॥२॥*
यदि तुम दिव्य दृष्टि(अभेद ज्ञान) से देखो तो तुम्हें यहाँ सर्वत्र उस एक ब्रह्म का ही विस्तार(विलास) दिखायी देगा । यह तो तुम्हारा अज्ञान है कि जिसके प्रभाव से तुम इस सब कुछ को 'संसार' समझने लगे हो । यही श्री सुन्दरदास जी आदि महात्माओं का भी कथन(अनुभव वचन) है ॥२॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें