शनिवार, 14 जुलाई 2018

= लघुता का अंग ४२(१३/१६) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू ऐसा बड़ा अगाध है, सूक्षम जैसा अंग ।*
*पुहुप वास तैं पतला, सो सदा हमारे संग ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*लघुता का अंग ४२*
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रज्जब चेले चक्कवै, गुरु गरीब ही तास । 
उनको उस दरबार की, उन माँहिं करि आस ॥१३॥ 
चेले तो चक्रवर्ती राजा हुये है और उनके गुरु गरीब धन रहित विरक्त हुये हैं किन्तु उन बड़े बड़े चक्रवर्तियों की उस परमात्मा के दरबार में जाने की आशा उन विरक्तों के द्वारा ही पूर्ण हुई है । यह लघुता की विशेषता है । 
मुरीद१ मुलुक२ सलूक३ के, देखो राह४ रसूल५ । 
रज्जब अज्जब सखुन६ यहु, सुन सब करो कबूल ॥१४॥ 
देखो, पैगम्बरों का मार्ग४ अर्थात सिद्धान्त और देश२ के शिष्यों१ का व्यवहार३ उससे यह लघुता की अद्भुत बात६ मिलती है, इसे ध्यान से सुनकर सभी को स्वीकार करना चाहिये अर्थात हृदय में लघुता का भाव रखना चाहिये । 
सत जत सुमिरन किये का, जे बल होयन माँहिं । 
सो रज्जब राम हिं मिले, संशय कोई नाँहिं ॥१५॥ 
यदि मन में सत्य का भाषण, ब्रह्मचर्य, हरि स्मरण आदि साधन करने का अभिमान रूप बल न हो अर्थात बड़ापन नहीं हो तो वह साधक अवश्य राम को प्राप्त होगा, इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है । 
गर्व न गिरवर१ ठाहरैं, आतम अंभ२ समान । 
रज्जब आवहि उभय चल, नभ्रीभूत३ निवान४ ॥१६॥ 
पर्वत१ शिखर पर जल२ नहीं ठहरता, वैसे ही गर्व पर जीवात्मा नहीं ठहरता दोनों ही पर्वत और गर्व से चलकर तालाब४ तथा नम्रता में आते है । अत: अन्त में प्राणी नम्ररूप३ हो जाता है ।
(क्रमशः)

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