मंगलवार, 10 जुलाई 2018

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卐 सत्यराम सा 卐
*पहली किया आप तैं, उत्पत्ति ओंकार ।*
*ओंकार तैं ऊपजै, पंच तत्त्व आकार ॥८॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! सृष्टि के आदि में परमात्मा ने पहले अपने आपसे ओंकार उत्पन्न किया । फिर ओंकार शब्द से पाँच तत्त्व आकार रूप में उत्पन्न होते हैं ॥८॥ 
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*पंच तत्त्व तैं घट भया, बहु विधि सब विस्तार ।*
*दादू घट तैं ऊपजै, मैं तैं वर्ण विकार ॥९॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! फिर पाँच तत्त्व से, अर्थात् पंचीकृत पंच महाभूतों से, स्थूल शरीर उत्पन्न होता है । फिर शरीर से बहुत प्रकार के व्यवहार का विस्तार होता है । और फिर घट से कहिए, शऱीर से मैं अमुक, तूं अमुक, वर्ण काला गोरा, आदि का विचार होता है अथवा वर्ण आश्रम आदि का विचार करता है ॥९॥ 
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*एक शब्द सब कुछ किया, ऐसा समर्थ सोइ ।*
*आगै पीछे तो करै, जे बलहीना होइ ॥१०॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! एक शब्द, शून्य प्रकृति, प्रणव अर्थात् ओंकार शब्द से, सब गृहीत है अर्थात् नाद और बिन्दु से दो प्रकार की सृष्टि मानी है । शब्द रूप सृष्टि का मूल कारण प्रणव है और वह ही जगत का कारण रूप मूल है । ब्रह्म का भी ओंकार वाचक स्वरूप है ॥१०॥ 
अकबर बूझी बात बहु, गुरु दादू ढिग आइ । 
सृष्टि हुई कैसे कहो, या साखी समझाइ ॥ 
अकबर बूझै सन्तजी, तीन बात अड़ी । 
ऐरण हथौड़ा संडासी, पहले कौन घड़ी ॥ 
दृष्टान्त - ब्रह्मऋषि दादूदयाल महाराज को बादशाह अकबर ने राजा भगवन्तदास के द्वारा आमेर से सीकरी बुलाया । तब प्रथम यह प्रश्‍न किया कि इन तीनों में से पहले कौनसी चीज बनी ? अर्थात् दार्ष्टान्त में स्वर्ग, मृर्त्यलोक, पाताल लोक इन तीनों में से प्रथम किसकी रचना हुई । अथवा प्रथम आकाश, अग्नि, जमीन, इनमें से पहले कौन उत्पन्न हुआ ? ब्रह्मऋषि ने उपरोक्त १० नम्बर साखी से उत्तर दिया कि वह परमेश्‍वर सर्व शक्तिवान् समर्थ है । उसके एक शब्द से ‘एकोऽहम् भविष्यामि’ ऐसा संकल्प करते ही सम्पूर्ण सृष्टि की रचना हो गई । अकबर बादशाह यह उत्तर सुनते ही ब्रह्मऋषि के सामने नत - मस्तक हो गया ।
(श्री दादूवाणी ~ शब्द का अंग)

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