#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*नानक नन्हे होए रहो जैसे नन्ही दूब ।*
*बड़े बड़े बह जात हैं दूब खूब की खूब ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*लघुता का अंग ४२*
इस अंग में लघुता की विशेषता बता रहे हैं ~
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वित्त१ बड़ाई में नहीं, बड़ा न हूज्यो कोय ।
छाप२ लई लघु आँगुली, रज्जब देखो जोय ॥१॥
बड़ाई में धन१ नहीं मिलता है, धन प्राप्ति के लिये कोई भी बड़ा न बने, देखो, जो छोटी अँगुली है, उसी ने अँगुठी२ प्राप्त की है बड़ी ने नहीं ।
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लघु१ को बंदै लोग सब, लघु को लेहिं सु गोद ।
जन रज्जब जोया२ नजरि३, देखो शशि सु कोद४ ॥२॥
हमने दृष्टि३ से देखा२ है, तुम भी देखो द्वितीया के छोटे१ चन्द्रमा को सब प्रणाम करते है तथा छोटे बच्चे४ को सभी गोद लेते हैं, अत: लघुता अच्छी है ।
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अनल पंखि पावे नहीं, सो मधु मांखी लेहि ।
रज्जब रज गज ना लहै, सो मीठा मसिय१ हिं देहिं ॥३॥
पुष्पों से शहद को महान अनल पक्षी नहीं निकाल सकता, किन्तु छोटी सी शहद की मक्खी निकाल लेती है । रेते में मिली हुई शक्कर को महान हाथी नहीं निकाल सकता किन्तु छोटी सी मक्खी वा चींटी लेती है, यह लघुता की ही विशेषता है ।
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मात हिं मुश्किल मेघ जल, पूत करत पय पान ।
रज्जब यूं लघुता लई, देख दई का दान ॥४॥
माता को तो बादल का जल मिलना भी कठिन होता है और छोटा बच्चा दूध पीता है, इस प्रकार लघुता की विशेषता देखकर के ही हमने लघुता अपनाई है, देखो, लघुता तो ईश्वर का दिया हुआ दान है अर्थात ईश्वर कृपा से ही हृदय में लघुता का भाव रहता है ।
(क्रमशः)
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