बुधवार, 25 जुलाई 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ६४/६६) =

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
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*शूरातन* 
शूरातन सहजैं सदा, साच शेल हथियार । 
साहिब के बल झूझतां, केते लिये सु१ मार ॥६४॥ 
साधक - शूर सत्य रूप भाला तथा सद्गुरु के यथार्थ शब्द रूप अन्यान्य हथियार ग्रहण करके परमात्मा के बल पर सदा युद्ध करता हुआ कितने ही कामादि शत्रुओं को अनायास सम्यक्१ प्रकार मार कर शौर्य दिखाता है । 
दादू जब लग जिय लागे नहीं, प्रेम प्रीति के सेल१ । 
तब लग पिव क्यों पाइये, नहिं बाजीगर का खेल ॥६५॥ 
जब तक भगवत् - प्रेम पूर्ण सँतों के वचन रूप भाले१ अन्त:करण में प्रीतिपूर्वक नहीं लगते, तब तक परमात्मा कैसे प्राप्त हो सकते हैं ? यह साधन - संग्राम है, बाजीगर का खेल तो नहीं है ।
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दादू जे तूँ प्यासा प्रेम का, तो किसको सैंतैं१ जीव ।
शिर के साटे लीजिये, जे तुझ प्यारा पीव ॥६६॥
हे जीव ! यदि तू प्रभु - प्रेम का प्यासा है तो बलिदानार्थ किसी जीव को क्यों सताता१ है ? वो वीरता पूर्वक नाना वस्तुओं का सँचय१ किसके लिये करता है ? यह तेरा शौर्य उचित नहीं । जो तुझे परमात्मा प्यारे लगते हैं तो अपने अहँकार रूप शिर को उतार करके उन्हें प्राप्त कर । 
(क्रमशः)

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