#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*साच न सूझै जब लगै, तब लग लोचन नांहि ।*
*दादू निर्बंध छाड़ कर, बंध्या द्वै पख माँहि ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*गर्व गंजन का अंग ४३*
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तेज तत्त्व को दीध ललाई, सो बुढ्ढी भ्रम भान ।
रज्जब रक्त वर्ण सब रोये, कौन रूप कहँ सान ॥९॥
अग्नि तत्त्व को जो लाली दी वही बीर-बहुटी को देकर अग्नि तत्त्व का अभिमान रूप भ्रम नष्ट कर दिया है, वीर-बहूटी को देखकर सभी रक्त वर्ण रोते हुये कहने लगे देखो, कैसा रूप किस कीट के शरीर में रखा है ।
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शशि समुद्र गर्व्यों कहा, जो मधु माँखी माँहिं ।
तूम में सुधा सहज अजरी में, गर्व रह्या कछु नाहिं ॥१०॥
जब मधु मक्खी के मुख से मधु मिलता है तब हे चन्द्रमा ! और हे समुद्र ! तुम क्या गर्व करते हो ? तुम में अमृत है तो मक्खी के मुख में शहद है, तुम्हारा गर्व कुछ भी नहीं रहा ।
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सभी कुंड वैकुण्ड में, शशि में सुधा सुठौर ।
सोई सिरज्या सर्प मुख, अल्प दिखाया और ॥११॥
स्वर्ग में अमृत कुंड है और चन्द्र बिम्ब रूप स्थान भी अमृत मय है, वही मुख्य सर्पों के निवास स्थान में वा सर्प के मुख में मणि रूप से उत्पन्न करके गर्व गंजन ईश्वर ने अन्य अमृतों में कमी दिखाकर उनका गर्व दूर कर दिया है ।
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अज बंधन पुस्तक किया, ज्योतिष ठौर उठाय ।
आगम कह्या ये बाल ने, लह्या न ज्योतिषिराय ॥१२॥
एक बालक ने हृदय स्थान से ज्योतिष शास्त्र की श्रद्धा हटाकर, बकरे को बाँधने की रस्सी को पुस्तक बना लिया अर्थात रस्सी को देख कर भविष्य में होने वाली वर्षा की बात कह दी, जिसे राज-ज्योतिषी ने न जान सका था ।
प्रसंग कथा - एक बालक ने अपनी माँ से कहा - बकरे की रस्सी खूँटे से खोलकर भीतर रख देना, वर्षा आयेगी न रखेगी तो भीग जायेगी । माँ बोली - कल सहदेव ज्योतिषी ने कहा था - अभी तो समीप में वर्षा का योग है ही नहीं । बालक - सहदेव कहै या न कहै वर्षा तो आज आयेगी । माँ ने बालक समझकर उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया, वर्षा आई और रस्सी भीग गयी, सांयकाल माँ ने बालक से पूछा - वर्षा आने का तुझे कैसे पता चला ? बालक - रस्सी सरद रही थी, वर्षा के आगमन में मूंज की रस्सी सरद जाती है ।
(क्रमशः)
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