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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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(९)
(ताल तिताला)
*सन्तो भाई पद मैं अचिरज भारी ।*
*समझै कौ सुनतैं सुख उपजै अन समझें कौं गारी ॥(टेक)*
आश्चर्यमयी सन्तों की वाणी : सन्तों की वाणी के पद(वचन = भजन) आश्चर्यमय होते हैं । जो उनको समझ लेता है वह आनन्दमग्न हो जाता है परन्तु जो उसको नहीं समझ पाया वह उसे अपने प्रति गाली(अपशब्द) समझ बैठा ॥टेक॥
*माय मारि करि ऊपरि बैठा बाप पकरि करि बांध्यौ ।*
*घर के और कुटंबी ऊपरि बिन कमान सर सांध्यौ ॥१॥*
यहाँ सफल साधक माता रूप माया को मार कर पितारूप अहंकार को पकड़ कर बांध लिया है । उसके अन्य(इन्द्रिय तथा कामक्रोध आदि) सम्बन्धिजनों को कमान के बिना ही ज्ञान-वाणों से बींधने का लक्ष्य बना कर रखा है ॥१॥
*त्रिया त्रास करि बाहरि काढी लहुडी धी घरि घाली ।*
*जेठी धी कै गलै छुरी दे बहू अपूठी चाली ॥२॥*
स्त्री रूप तृष्णा को घर से बाहर निकाल दिया है तथा छोटी स्त्री रूप लघुता(निरभिमानता = नम्रता) को घर(हृदय) में बसा लिया है । बड़ी स्त्री के गले पर विनय की छुरी रख दी । पुत्रवधू अपने घर चली गयी ॥१२॥
(क्रमशः)
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