शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

= लघुता का अंग ४२(८/१२) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*एक तत्त्व ता ऊपर इतनी, तीन लोक ब्रह्मंडा ।*
*धरती गगन पवन अरु पानी, सप्त द्वीप नौ खंडा ॥*
================= 
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*लघुता का अंग ४२*
.
सु गुरु बीज बड़ सारिखा, शिष शाखा विस्तार । 
रज्जब अज्जब देखिया, लघु दीरघ व्यवहार ॥९॥ 
श्रेष्ठ गुरु तो वट बीज के समान है और शिष्ट वट की शाखा-विस्तार के समान है, बीज तो लघु होने पर भी बना रहता है और उससे अनेक शाखायें निकलती हैं, वैसे ही गुरु निष्ठा में स्थित रहता है उससे अनेक शिष्य तैयार होते हैं । शाखा महान् होने पर भी नष्ट होती है । इस प्रकार छोटे और बङों का व्यवहार अद्भुत देखा गया है और लघुता में ही श्रेष्ठता सिद्ध होती है । 
वारि बूंद रूपी सु गुरु, शिष समुद्र उनहार । 
रज्जब रचना राम की, लघु दीरघ सु विचार ॥१०॥ 
गुरु तो आकाश के जल की बिन्दु के समान है, शिष्य समुद्र के समान१ है, जैसे आकाश के जल की बिन्दु छोटी होने पर भी मधुर है समुद्र विशाल होने पर भी खारा है, वैसे ही गुरु धनादि की दृष्टि से छोटे होने पर भी सर्व प्रिय है और शिष्य धन जनादि से बड़े होने पर भी सर्वप्रिय नहीं होते, इस प्रकार राम की लघु - दीर्घ रचना का भली-भांति विचार करने से लघुता ही श्रेष्ठ सिद्ध होती है । 
गुरु बृहस्पति शुक्र से, शिष सब देव दयंत । 
ज्यो मंदिर पर कलश लघु, अति सुन्दर शोभंत ॥११॥
मंदिर तो महान् है और उसके ऊपर कलश लघु है तो भी अत्यन्त सुन्दर शोभा देता है वैसे ही गुरु तो बृहस्पति तथा शुक्राचार्य के समान हैं और शिष्य देवता तथा दैत्यों के समान हैं, गुरु लघु होने पर भी सुशोभित हो रहे हैं, यह लघुता की विशेषता प्रकट दीख रही है । 
सब अवतारों के सु गुरु, देखो आदि अतीत । 
रज्जब पाई प्राणि ने, लघु दीरघ सु प्रतित ॥१२॥ 
देखो, आदि काल में भी सभी अवतारो के गुरु संत हुये हैं, इस प्रकार विचारशील प्राणियो ने बङो में भी लघुओं की प्रसिद्धि देखी है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें