शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

= सुन्दर पदावली(२. राग माली गौडी २) =

#daduji

॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= २. राग माली गौडी =*
.
(२)
(ताल रूपक) 
*सतसंग नित प्रति कीजिये मति होई निर्मल सार रे ।* 
*रति प्रानपति सौं ऊपजै अति लहै सुक्ख अपार रे ॥(टेक)* 
*सत्संग की अनिवार्यता* : साधक को प्रतिदिन सत्संग करना चाहिये । इससे उसकी बुद्धि स्वच्छ एवं निर्दोष तथा शुद्ध हो जाती है । इतना ही नहीं, इस सत्संग के प्रभाव से साधक के हृदय में भगवान् के प्रति स्वाभाविक प्रेम उमड़ता है तथा वह अतिशय आध्यात्मिक सुख का अनुभव करता है ॥(टेक) 
*मुख नाम हरि हरि उच्चरै श्रुति सुनै गुन गोबिन्द रे ।* 
*रटि ररंकार अखंड धुनि तहां प्रगट पूरन चन्द रे ॥१॥* 
अतः तूँ 'र रंकार'('राम' के संक्षिप्त रूप) की अखण्ड(निरन्तर) ध्वनि करता रहा, तभी तुझे उस पूर्ण ब्रह्म(परमात्मा) के प्रकाश का साक्षात्कार होगा ॥१॥
*सतगुरु बिना नहिं पाइये यह अगम उलटा षेल रे ।* 
*कहि दास सुन्दर देषतें होइ जीव ब्रह्म हि मेल रे ॥२॥* 
सद्गुरु के उपदेश के बिना यह तुझे किसी भी प्रकार से प्राप्त नहीं हो सकता; क्योंकि यह साधारण साधक की बुद्धि के लिये अगम्य अतएव विपरीत खेल(उपाय) है । महाराज श्रीसुन्दरदास जी कहते हैं, इस ररंकार के निरन्तर रटने से(इस एकमात्र उपाय से) ही जीव का ब्रह्म से मिलन हो सकता है(अन्य किसी भी उपाय से नहीं) ॥२॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें