सोमवार, 2 जुलाई 2018

= सुन्दर पदावली(१-जकड़ी राग गौड़ी ६/१) =

#daduji

॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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(६)
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(ताल तिताला) 
सन्तो भाई पानी बिन कछु नांहीं ।
तौ दर्पन प्रतिबिंब प्रकाशै जौ पानी उस मांहीं ॥(टेक) 
पानी तें मोती की सोभा मंहिगे मोल बिकावै । 
नहिं तो फटकि शिला की सरिभरि कौडी बदलै पावै ॥१॥ 
[इस पद में 'पानी' शब्द श्लेषालंकार के माध्यम से अनेक अर्थों में प्रयुक्त किया गया है ।] 
महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं - प्रिय सन्तो ! पानी(व्यक्ति की विशेष चमक = आभा) के बिना संसार में किसी की विशेषता प्रगत नहीं होती । जैसे किसी दर्पण में कोई प्रतिबिम्ब(छाया) तभी दिखायी देगा जब उस(दर्पण) में पानी(विशेष आभा) होगा ॥टेक॥ 
किसी मोती की शोभा भी 'पानी' से ही है । जो मोती जितना पानी दार (चमकदार) होगा वह बाजार में उतना ही मँहगा बिकेगा । यदि मोती में पानी(चमक) न हो तो वह स्फटिकशिला के समान 'कोड़ी के भाव' ही बिकेगा ॥१॥
(क्रमशः)

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