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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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(६)
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(ताल तिताला)
सन्तो भाई पानी बिन कछु नांहीं ।
तौ दर्पन प्रतिबिंब प्रकाशै जौ पानी उस मांहीं ॥(टेक)
पानी तें मोती की सोभा मंहिगे मोल बिकावै ।
नहिं तो फटकि शिला की सरिभरि कौडी बदलै पावै ॥१॥
[इस पद में 'पानी' शब्द श्लेषालंकार के माध्यम से अनेक अर्थों में प्रयुक्त किया गया है ।]
महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं - प्रिय सन्तो ! पानी(व्यक्ति की विशेष चमक = आभा) के बिना संसार में किसी की विशेषता प्रगत नहीं होती । जैसे किसी दर्पण में कोई प्रतिबिम्ब(छाया) तभी दिखायी देगा जब उस(दर्पण) में पानी(विशेष आभा) होगा ॥टेक॥
किसी मोती की शोभा भी 'पानी' से ही है । जो मोती जितना पानी दार (चमकदार) होगा वह बाजार में उतना ही मँहगा बिकेगा । यदि मोती में पानी(चमक) न हो तो वह स्फटिकशिला के समान 'कोड़ी के भाव' ही बिकेगा ॥१॥
(क्रमशः)
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