सोमवार, 2 जुलाई 2018

= साधु मिलाप मङ्गल उत्साह का अंग ३९(५-८) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*मन मतवाला राम रंग, मिल आसण बैठे एक संग ।*
*सुस्थिर दादू एकै अंग, प्राणनाथ तहँ परमानन्द ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*साधु मिलाप मङ्गल उत्साह का अंग ३९*
साधु सदन१ पधारतैं२, सकल होहि कलयाण । 
रज्जब अघ३ उडु४ गण दुरहिं५, पुण्य प्रकटे ज्यों भान ॥५॥ 
संतों के आश्रम१ पर जाने से२ जैसे सूर्य उदय होने पर तारा४ गण छिप५ जाता है, वैसे ही पुण्य उदय होकर पापों३ का अभाव हो जाता है और सभी प्रकार के कल्याण होता है । 
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भाग्य भूमि अस्थल उदय, आवहिं साधु१ संत । 
जन रज्जब जग उद्धरे, जप जीवन भगवंत ॥६॥ 
उस भूमि, स्थल और वहां के निवासी जीवों का भाग्योदय होता है तभी श्रेष्ठ१ संत आते हैं, उनके उपदेश से प्राणी अपने जीवन रूप भगवान् का नाम जपकर संसार से पार हो के ब्रह्मस्वरूप में लय होते हैं । 
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जिन देखे दुख दूर ह्वैं, मिलतों मंगलाचार । 
रज्जब रहिये संग तिन, विविध बहानों लार१ ॥७॥ 
जिनको दूर से देखने पर भी दु:ख दूर हो जाते हैं और मिलन सत्संग से तो मंगलाचार होने लगते हैं, उन संतों के संग नाना बहानों के साथ१ रखकर भी रहना चाहिये । 
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आँख्या आनंद श्रवण सुख, मन मंगल सु अगाध ।
जन रज्जब रस रंग ह्वै, मिलतों साधु१ साध ॥८॥ 
श्रेष्ठ१ सन्तों के मिलन से नेत्रों को दर्शनानन्द, श्रवणों को शब्दानन्द, मन को अपार मंगल का अनुभवानन्द और रस स्वरूप ब्रह्म का प्रेम, प्राप्त होता है ।
(क्रमशः)

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