#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ४. राग कानड़ो =*
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(६)
*तूं अगाध परब्रह्म निरंजन को अब तोहि लहै ।*
*अजर अमर अबिगति अबिनासी कौंन रहनि रहै ॥(टेक)*
हे निरञ्जन परब्रह्म ! तूँ अगाध है, अतः तेरी गम्भीरता को कौन पा सकता है । तूँ कभी न जीर्ण होने वाला, कभी न मरने वाला, कभी न नष्ट होने वाला तथा किसी को भी पहुँच से दूर और तूं किस स्थिति में रहता है - यह कोई नहीं जानता ॥टेक॥
*ब्रह्मादिक सनकादिक नारद से सहु अगम कहै ।*
*सुन्दरदास बुद्धि अति थोरी कैसे तोहि गहै ॥१॥*
ब्रह्मा आदि देवता एवं सनक सनन्दन आदि ज्ञानियों ने भी तुझको 'अगम्य' ही कहा है । जबकि यह भक्त सुन्दरदास तो अतिशय मतिमन्द है, वह तुम्हारे विषय में कैसे कुछ जान सका है ॥१॥
(क्रमशः)
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