रविवार, 29 जुलाई 2018

= गर्व गंजन का अंग ४३(२५/२८) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू मना मनी सब ले रहे, मनी न मेटी जाइ ।*
*मना मनी जब मिट गई, तब ही मिले खुदाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*गर्व गंजन का अंग ४३*
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हंस गरुड़ वृषभ वाजि मृग मद१, ये रथ सुर असवार । 
रज्जब तिनको विघ्न न व्याप्या, गर्व गादह२ पर भार ॥२५॥ 
हंस, गरुड़, बैल, अश्व, मृग, इन वाहनों रूपी रथों पर चढ़ने से तो देवताओं को कोई विघ्न नहीं हुआ, किन्तु गर्व रूपी गधे पर चढ़ते ही मार पड़ने लगी अर्थात गर्व से पतन हुआ । 
पिंड चढे प्राणहु चढे, चढे सु दिल दीवान । 
रज्जब पाले पीटिये, चढे जु गर्व गुमान ॥२६॥ 
शरीर पर चढे, प्राणियों पर चढे, प्रधान मानवों के दिल पर चढे, इन सबकी तो ईश्वर ने रक्षा की किन्तु जो गर्व-गुमान पर चढे उसको पीटा गया । 
चौरासी किस पर चढी, पशु पाले दिन रात । 
रज्जब रामहि ना मिली, हम रीझे इस बात ॥२७॥ 
चौरासी लक्ष योनियों के जीव किस पर पड़ते हैं तथा दिन रात बकरी भेड़ रूप पशुओं के पालने वाले किस पर चढ़ते हैं ? किन्तु फिर भी उन योनियों में जीवात्मा राम से नहीं मिल सकी, हम भगवान की इस बात पर प्रसन्न हैं कि वे वाहनादि पर चढ़ने वा न चढ़ने से प्रसन्न नहीं होते, निराभिमान होने से ही प्रसन्न होते हैं । 
न्याय नीति सब ठौर सु प्यारी, रज्जब दीसे तीनों भौन । 
प्यादे१ चढे चाकरी पूरे, तिनके पटे उतारे कौन ॥२८॥ 
न्याय तथा नीति तीनों लोकों के सभी स्थानों में प्रिय दिखाई देती है, जो अपनी नौकरी में पूरे होते हैं वे पदाति१ भी स्वामी की अश्वादि पर चढ़ जाते हैं, तब उनके पट्टे कौन उतारता है ? इसी प्रकार पूर्ण रूप से भक्ति कर लेता है तब अभिमान से रहित उस संत का मुक्ति रूप पट्टा कौन छीन सकता है ।
(क्रमशः)

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