शनिवार, 28 जुलाई 2018

(४)


卐 सत्यराम सा 卐
*दादू देख हरि पावा,*
*हरि सहजैं संग लखावा ।*
*पूरण परम निधाना,*
*निज निरखत हौं भगवाना ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद. ७८)
===================
*राघवयादवीयम्* ~ लेखक *श्री वेंकटाध्वरी*
साभार सौजन्य ~ मुदित मिश्र विपश्यी(हिंदी/अंग्रेजी अनुवाद)
अंग्रेजी अनुवाद ~ डा. सरोजा रामानुजम, M.A., Ph.d, Siromani in Sanskrit 
.
(४)
*श्री रामलीला*(अनुलोम)
रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।
नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥४॥
राम की अलौकिक आभा – जो सुर्यतुल्य है, जिससे समस्त पापों का नाश होता है – से पूरा नगर प्रकाशित था । उत्सवों में कमी ना रखने वाला यह नगर, अनन्त सुखों का श्रोत तथा तारों की आभा से अनभिज्ञ था(ऊंचे भवन व वृक्षों के कारण) ॥४॥
The city of Ayodhya was pervaded by the lustre of Rama, equal to the Sun, capable of destroying all sins, was never without festivals, was a source of infinite joy and has never known the light of the stars.(4)
.
*श्री कृष्णलीला*(विलोम)
यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।
तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥४॥
यादवों के सूर्य, सबों को प्रकाश देने वाले, विनम्र, दयालु, गऊओं के स्वामी, अतुल शक्तिशाली श्रीकृष्ण के द्वारा द्वारका की रक्षा भलीभांति की जाती थी ॥४॥
Sri Krishna, who was the Sun of the yadhavas, providing light to all, the noblest, generous and the Lord of the cows and the abode of limitless power and prosperity protected well the city of Dwaraka. (4)
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें