शनिवार, 21 जुलाई 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ५८/६०) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
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*शूरातन* 
दादू मरबो एक जु बार, अमर झुकेड़े१ मारिये । 
तो तिरिये सँसार, आतम कारज सारिये ॥५८॥ 
५९ - ६० में शूरता का परिचय दे रहे हैं, अहँकार का नाश रूप मरण तो एक ही बार होता है फिर तो अमरता प्राप्त हो जाती है । अत: अमर ब्रह्म की ओर ही मन के धक्के१ लगाओ=मन को अहँकार रहित करो, तब ही सँसार से पार होकर परब्रह्म - प्राप्ति रूप अपना कार्य सिद्ध कर सकोगे । 
दादू जे तूँ प्यासा प्रेम का, तो जीवन की क्या आस । 
शिर के साटे पाइये, तो भर भर पीवे दास ॥५९॥ 
हे साधक ! यदि तू भगवत् प्रेम का प्यासा है, तो अहँकार को जीवित रखने की क्यों आशा करता है ? सच्चे भक्त - जन तो अहँकार रूप शिर देने पर भी प्रभु - प्रेम मिले, तब भी सहर्ष अपने कर्ण - पुटों को भर - भर कर पान करते हैं । जीवन से अधिक महत्व भगवत्कथा - श्रवण को देते हैं ।
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*कायर*
मन मनसा जीते नहीं, पँच न जीते प्राण ।
दादू रिपु जीते नहीं, कहैं हम शूर सुजान ॥६०॥
६१ - ६२ में कायर का परिचय दे रहे हैं, जिनने मन को, अन्त:करण की नाना साँसारिक वासनाएं, पँचज्ञानेन्द्रिय, और काम क्रोधादिक रिपुओं को विजय किया नहीं, फिर भी कहते हैं "हम रण चतुर शूर हैं" । वे शूर न होकर कायर ही हैं । 
(क्रमशः)

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