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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ४. राग कानड़ो =*
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(५)
*सब कोउ आप कहावत ज्ञानी ।*
*जाकौं हर्ष शोक नहिं ब्यापै ब्रह्मज्ञान की ये नीसांनी ॥टेक॥*
यों तो आज संसार में सभी कोई स्वयं को ज्ञानी घोषित करते हैं, परन्तु वस्तुतः ज्ञानी वही है जिसे सांसारिक घटनाओं से कोई सुख या दुःख नहीं होता । ब्रह्म ज्ञान का यही एकमात्र चिन्ह है ॥टेक॥
*ऊपर सब बिवहार चलावै अंतहकरण शून्य करि जांनी ।*
*हानि लाभ कछु धरै न मन मैं इहिं बिधि बिचरै निर अभिमांनी ॥१॥*
ज्ञानी बाह्यदृष्टि से लोक में समग्र व्यवहार करता है, परन्तु उसका अन्तःकरण उन सांसारिक बातों से सर्वथा दूर रहता है । वह लौकिक हानि या लाभ की कोई परवाह नहीं करता है । वह निरभिमान होकर लोकव्यवहार करता है ॥१॥
*अहंकार की ठौर उठावै आतम दृष्टि एक उर आंनी ।*
*जीवन-मुक्त जांनी सोइ सुन्दर और बात की बात बषानी ॥२॥*
वह अपने व्यवहार में कैसी भी अहंकार की स्थिति नहीं बनने देता । वह स्वार्थ दृष्टि को भी अपने व्यवहार में नहीं आने देता । महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं - ऐसे ही ज्ञानी पुरुष को जीवन-मुक्त कहा जाता है । इस विषय में अन्य सब उत्तर(कथनोपकथन) तो कथनमात्र हैं ॥२॥
(क्रमशः)
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