#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू एकै घोड़ै चढ चलै, दूजा कोतिल होइ ।*
*दुहुँ घोड़ों चढ बैसतां, पार न पहुंता कोइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*गर्व गंजन का अंग ४३*
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गरीब निवाज गर्व गंजन सांई, उभय बिड़द१ परि बाँधी बांई२ ।
राव हि रंक रंक को राजा, सब विधि समर्थ पूरण काजा ॥२१॥
गरीब निवाज और गर्व गंजन ये दो प्रकार का यश१ भगवान् का फैला हुआ है इसकी रक्षा के लिये भगवान ने तलवार२ बाँध रखी है, वे प्रभु राजा और रंक को राजा करने में सर्व प्रकार से समर्थ हैं और भक्तों के कार्य पूर्ण करते रहते हैं ।
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गर्व गंजन गोविन्दजी, सदा गरीब निवाज ।
उभय अंग अविगत कनें, बहै बिड़द की लाज ॥२२॥
गोविन्द गर्व नष्ट करते हैं और गरीब पर कृपा करते हैं, मन ईन्द्रियों के अविषय प्रभु के पास उक्त दोनों बातों के साथ रहते हैं, वे अपने विरूध की लज्जा अवश्य रखते हैं ।
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ब्रह्मा विष्णु महेश सूर शशि, इन्द्र गणेश्वर गौरी देवी ।
ये असवार अजहुं नहिं उतरै, सावधान सांई की सेव ॥२३॥
ब्रह्मा हंस पर, विष्णु गरुड़ पर, महादेव बैल पर, सुर्य अश्व पर चन्द्रमा मृग पर, इन्द्र हाथी पर, गणेश चूहा पर, गौरी सिंह पर चढ़ते हैं । ये उक्त देवतारूप सवार अपने वाहनों से कभी भी नहीं उतरते अर्थात चढे ही रहते हैं किन्तु भगवान की भक्ति में सावधान हैं, अत: उन्हें कोई हानि नहीं है, गर्व पर चढ़ने से ही से ही हानि होती है ।
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ब्रह्मा विष्णु महेश सूर शशि, इद्र लगै असवार ।
रज्जब रथ पर सुरहु न शंकट, गर्व चढे भये ख्वार ॥२४॥
ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, सूर्य, चन्द्रमा, इन्द्र तक के सभी सवार अपने-अपने वाहन रूप रथ पर चढ़ते हैं तब तो उन्हें कोई भी संकट नहीं होता किन्तु गर्व पर चढे कि खराब हुवे ।
(क्रमशः)
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