शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

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卐 सत्यराम सा 卐
*दादू जिस रस को मुनिवर मरैं, सुर नर करैं कलाप ।*
*सो रस सहजैं पाइये, साधु संगति आप ॥* 
*संगति बिन सीझे नहीं, कोटि करे जे कोइ ।*
*दादू सतगुरु साधु बिन, कबहुँ शुद्ध न होइ ॥* 
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साभार ~ Chetna Kanchan Bhagat

पूर्णिमा का चांद जब होता है तो तुमने सागर में उतुंग लहरें उठती देखीं, और तुम भी तो अस्सी प्रतिशत सागर का जल हो—पूरे चांद को देखकर तुम्हारे भीतर भी तरंगें उठती होंगी, उठती हैं। यह जानकर तुम हैरान होओगे कि सर्वाधिक लोग पागल पूर्णिमा की रात्रि को होते हैं। सर्वाधिक लोग बुद्धत्व को भी उपलब्ध पूर्णिमा की रात्रि को होते हैं। गिरना भी पूर्णिमा की रात्रि, चढ़ना भी पूर्णिमा की रात्रि।
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बुद्ध के जीवन में तो बड़ा प्यारा उल्लेख है कि वे पूर्णिमा के दिन ही पैदा हुए, पूर्णिमा के दिन ही बुद्धत्व को उपलब्ध हुए, पूर्णिमा के दिन ही उनकी मृत्यु हुई। इस दुनिया में बुद्धत्व को जितने लोग उपलब्ध हुए हैं उनमें से अधिक लोग पूर्णिमा के दिन हुए हैं। पूर्णिमा की रात बड़ी अद्भुत है ! और पागल भी लोग पूर्णिमा की रात्रि ही होते हैं। दुनिया में हत्याएं भी पूर्णिमा की रात सबसे ज्यादा होती हैं और आत्महत्याएं भी सबसे ज्यादा होती हैं। हिंदी में भी हम पागल को चांदमारा कहते हैं, अंग्रेजी में लूनाटिक कहते हैं। लूनाटिक का मतलब भी चांदमारा।

अगर चांद का इतना प्रभाव होता है, इतने दूर चांद का इतना प्रभाव होता है कि किसी को पागल कर दे, कि किसी को बुद्धत्व को पहुंचा दे, कि किसी की आत्माहत्या हो जाए, कि कोई हत्या कर दे। और ऐसा आदमी तो बहुत मुश्किल है खोजना जो चांद से बिलकुल प्रभावित न होता हो—असंभव है ! किसी—न—किसी रूप में चांद प्रभावित करता है। तो क्या उन लागों की हम बात करें जिनके भीतर का चांद प्रगट हो गया हो, जिनके भीतर की बदलियां कट गई हों, जिनके भीतर पूर्णिमा हो गई हो; जो भीतर पूर्ण हो गए हों, जिन्होंने चैतन्य की पूर्णता को पा लिया हो।
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वे ही सद्गुरु हैं, उनके प्रताप से प्रार्थना का जन्म होता है। और उनके आसपास जो जमात इकट्ठी हो जाती है—दीवानों की, पियक्कड़ों की, मस्तों की, उनको ही साधु कहा है। साधुओं की संगति हो और गुरु का प्रताप हो, तो तुम्हारे सारे प्रयास सार्थक हो जाएंगे। क्योंकि फिर प्रयास + प्रार्थना…। तुम्हारे भीतर प्रार्थना की धुन बजने लगेगी। और जब प्रयास + प्रार्थना, तो फिर कोई बाधा न रही। 
प्रयास + प्रार्थना = परमात्मा—ऐसा समीकरण है। 
गुरु—परताप साध की संगति !
~ओशो

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