#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= ४. राग कानड़ो =*
.
(८)
*पंडित सो जु पढै यह पोथी ।*
*जा मैं ब्रह्म बिचार निरंतर और बात जानौं सब थोथी ॥(टेक)*
ह्म 'पण्डित'(ज्ञानी) उसे ही मानते हैं जो इन अध्यात्म ग्रन्थों को पढ़ता है तथा जिस का चित्त निरन्तर ब्रह्म चिन्तन में लीन रहता है । इस विषय की शेष मान्यताएँ कल्पनामात्र(थोथी) हैं ॥(टेक)
*पढत पढत केते दिन बीते बिद्या पढी जहां लग जो थी ।*
*दोष बुद्धि जौ मिटी न कबहूं यातैं और अबिद्या को थी ॥१॥*
शास्त्रों का अध्ययन करते हुए बहुत समय बीत गया, अब तक हमने वे ग्रन्थ सभी पढ़ लिये हैं जो हमें उपलब्ध हुए । फिर भी हमारी 'दोष दर्शन' की बुद्धि क्षीण न हुई - इससे बढ़कर अविद्या(अज्ञान) क्या हो सकती है ॥१॥
*लाभ पढै कौ कछू न हूवौ पूंजी गई गांठि की सो थी ।*
*सुन्दरदास कहै सुंमझावै बुरौ न कबहूं मानौं मो थी ॥२॥*
हमको इस लम्बे चौड़े(विस्तृत) अध्ययन का कोई लाभ न मिला । अपितु हमारा वह स्वाभाविक ज्ञान भी विनष्ट हो गया । सन्त कहते हैं - हम तुम को भी यही बात समझा रहे हैं । हमारे इस परामर्श का अन्य कोई अर्थ न लगाना ॥२॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें