मंगलवार, 31 जुलाई 2018

= करुणा को अंग ४४(१/४) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू बुरा बुरा सब हम किया, सो मुख कह्या न जाइ ।*
*निर्मल मेरा सांइयाँ, ताको दोष न लाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*करुणा को अंग ४४*
इस अंग में दुःखपूर्वक भगवान से दया करने की प्रार्थना कर रहे हैं ~ 
आदि अन्त मधि हम बुरे, हम सों भला न होय । 
रज्जब ज्यों साहिब खुशी, सो लक्षण नहिं कोय ॥१॥ 
हम अपने जीवन के आदिकाल, मध्यकाल और अन्तकाल में भी बुरे ही रहे, हमसे भला कार्य हो ही नहीं रहा है, भगवान जिससे प्रसन्न होते हैं उनसे से तो हमारे में एक भी लक्षण नहीं है । 
रज्जब हम सौं हम दुखी, तो राम सुखी क्यों होय । 
अजा१ अजुगत२ सु कंठ कुच, खसम न पीवे चोय ॥२॥ 
बकरी के गले में अनुपयुक्त कुचों से उसे भी सुख नहीं मिलता, बच्चों से खैंचने आदि से दु:ख ही मिलता है और न उसके स्वामी को उसके दूध से सुख मिलता है, वैसे ही अपने कार्यो से हम भी दु:खी हैं तब राम सुखी कैसे हो सकते है । 
बंदे में सो बंदगी, जा में सुख नहिं लेश । 
रज्जब शिर की ठौर थी, तहां दीजिये केश ॥३॥ 
जैसे शिर देने के स्थान में केश दिया जाय, ऐसी ही भक्ति भक्त में है, जिसमें लेश भी सुख नहीं मिलता तब राम कृपा कैसे करेंगे । 
रज्जब सम अधम सु नहीं, तुम प्रभु अधम उधार । 
उभय अंग१ में फेर२ क्या, कीजे कृपा विचार ॥४॥ 
मेर समान कोई अधम नहीं है, और आपके समान अधमोद्धारक नहीं है, अत: मुझमें अधमता और आपमें अधमोद्धारकता इन दोनों लक्षणों१ में क्या कमी२ है ? अर्थात नहीं है, इस उक्त बात का विचार करके आप मुझ पर कृपा करें ।
(क्रमशः)

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