रविवार, 29 जुलाई 2018

= २६ =

卐 सत्यराम सा 卐
*श्रम न आवै जीव को, अनकिया सब होइ ।*
*दादू मारग मिहर का, बिरला बूझै कोइ ॥* 
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*परमात्मा प्रतिध्वनि है (RESONANCE)*
*कृष्ण भगवान कहते हैं कि जो मुझे जिस भांति भजता है, मैं भी उसे उस भांति भजता हूँ।*
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*ये भगवान कृष्ण का अनूठा प्रतिसंवाद है। जैसे कोई पहाड़ों पर स्थित होकर एक ध्वनि प्रेषित करता है तो वही ध्वनि पहाड़ों से टकराकर कई बार लौटती है, जिसे हम अनुनाद(resonance) कहते हैं। ठीक उसी प्रकार हमारे चारों ओर परमात्मा मौजूद है।और वो परमात्मा भी प्रतिध्वनि(resonance) है। जैसे हम होते हैं ठीक वैसी ही प्रतिध्वनि परमात्मा हमें देता है।* 
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हमारे भीतर जो फलित(भाव) होता है, वो परमात्मा नाम के दर्पण में प्रतिविम्बित होकर हम तक लौट आता है अर्थात कृष्ण के इस प्रतिसंवाद का अर्थ यही है कि जो जिस भांति कृष्ण के दर्पण तक पहुंचता है, उसी भांति तस्वीर उस तक लौट आती है। 
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*परमात्मा चैतन्य है, जीवंत है और प्राणों के स्पंदन से भरा हुआ अस्तित्व है। हमारे प्राणों में जब भी प्रार्थना का कोई स्पंदन उठता है और हम परमात्मा की तरफ बहना शुरू होते हैं तो ये कभी मत सोचिएगा कि ये यात्रा एक तरफा है।* 
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*हम कदम उठाते हैं तो वो भी हमारी तरफ बढ़ता है और हमसे तेज। लेकिन साधारणतया ये दिखाई नहीं देता क्योंकि हम जगत की क्षुद्रता में इतना खोये हैं कि उस चिर प्रतिध्वनि की गहराई में जाने की क्षमता खो देते हैं।* भगवान इस कथन के द्वारा यही समझाते हैं कि इस अस्तित्व में अपने प्राणों से जिस रूप में भी हम ध्वनियां उत्पन्न करते हैं, वे ही परमात्म रूपी पहाड़ी से अनंत गुना होकर हम पर लौट आती हैं। परमात्मा प्रतिपल हमें वही देता है जो हम उसे चढाते हैं।
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हमारे चढ़ाये फूल भी हमें वापस मिल जाते हैं और हमारे द्वारा फेंके गए पत्थर भी वापस हम तक ही आते हैं। अगर जीवन में दुख हो तो जानिए कि हमने अपने चारों ओर दुख की ही ध्वनि पैदा की है जो आज प्रतिध्वनित हो रही है। 
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*अगर जीवन में प्रेम का अभाव है तो जानिए कि अपने कभी किसी को प्रेम से पुकारा नहीं। ये नियम नहीं बल्कि महानियम है कि जो हम देते हैं, वही वापस मिल जाता है और कई गुना होकर।* 
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शिशुपाल के वध के दौरान कृष्ण भगवान की उंगली में चोट लग गयी थी और द्रोपदी ने मात्र एक छोटा सा कपड़े का टुकड़ा भाव से कृष्ण की उंगली में बांधा था उस वक्त रक्त के प्रवाह को रोकने के लिए। फिर आप सब जानते ही हैं कि वो छोटा सा कपड़े का टुकड़ा कितना गुना होकर वापस मिला द्रोपदी को और वो भी तब जब उसे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। *ये कोई कल्पना नहीं या मात्र प्रेरणादायी कहानी नहीं है।*
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*जीवनरूपी खेत में जब हम बोते हैं तो अज्ञानतावश हमें पता नहीं चलता कि हम क्या बो रहे हैं, सामान्यतया हम तभी जान पाते हैं जब फल आ जाते हैं और जब वो फल कडवे होते है, जहरीले होते हैं तब हम रोते हैं, कोसते हैं। हमें पता नहीं होता कि ये फल हमारे बोए हुए बीजों का ही परिणाम है।* 
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इस जगत में कभी भी किसी के साथ अन्याय नहीं होता। भगवान कृष्ण के इस कथन का मात्र आशय इतना ही है कि अगर किसी ने इस जगत को पदार्थ माना तो "" परमात्मारूपी "" प्रतिध्वनि के कारण उसे अपने दर्पण में ये पदार्थ ही दिखने लगेगा और जो जगत को परमात्म भाव से देखेगा तो उसके लिए ये जगत परमात्मा का ही प्रतिफलन हो जाएगा। 
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*हमारे हृदय में छुपे हुए भाव ही जगत में प्रतिविम्बित होते हैं, जो स्वर हमारे भीतर बजते हैं चाहे प्रेम के चाहे घृणा के, चाहे निंदा के चाहे अहोभाव के या और कुछ, वही स्वर सारे जगत में हमें सुनाई देने लगते हैं क्योंकि परमात्मा responding है पल प्रतिपल।* 

जय श्रीकृष्णा

साभार: Vijay Divya Jyoti

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