रविवार, 29 जुलाई 2018

(५)

卐 सत्यराम सा 卐
*वास निरन्तर सो समझाइ,*
*बिन नैनहुँ देखूँ तहाँ जाइ ॥*
*दादू रे यहु अगम अपार,*
*सो धन मेरे अधर अधार ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद. ७०)
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*राघवयादवीयम्* ~ लेखक *श्री वेंकटाध्वरी*
साभार सौजन्य ~ मुदित मिश्र विपश्यी(हिंदी/अंग्रेजी अनुवाद)
अंग्रेजी अनुवाद ~ डा. सरोजा रामानुजम, M.A., Ph.d, Siromani in Sanskrit 
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(५)
*श्री रामलीला*(अनुलोम)
यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥५॥
गाधीपुत्र गाधेय, यानि ऋषि विश्वामित्र, एक निर्विघ्न, सुखी, आनंददायक यज्ञ करने को (इच्छुक)इक्षुक थे पर आसुरी शक्तियों से आक्रान्त थे, उन्होंने शांत, शीतल, गरिमामय त्राता राम का सरंक्षण प्राप्त किया था ॥५॥ 
The sage Visvamithra, who desired the pleasure of performing the yajna comfortably, and afraid of the destructive elements, obtained Rama who was calm, growing with glory.(5)
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(५)
*श्री कृष्णलीला*(विलोम) 
तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।
सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥५॥
नारद मुनी – दैदीप्यमान, अपनी संगीत से योद्धाओं में शक्ति संचारक, त्राता, सद्गुणों से भरपूर, ब्राह्मणों के नेतृत्वकर्ता के रूप में विख्यात – ने विश्व के कल्याण के लिए गायन करते हुए श्रीकृष्ण से याचना की जिनकी ख्याति में वृद्धि एक दयावान, शांत परोपकार को इक्षुक, के रूप में दिनोदिन हो रही थी ॥५॥
Sage Narada, glorious with lustre, who was the leader among brahmins, who instilled courage in the warriors and well versed in music, approached Krishna, who was cool, fearless, growing in fame for the welfare of the world, singing .(5)
(क्रमशः)

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