गुरुवार, 26 जुलाई 2018

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*जहाँ अगम अनूप अवासा, तहँ महापुरुष का वासा ।*
*तहँ जानेगा जन कोई, हरि मांहि समाना सोई ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद. ७८)
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*राघवयादवीयम्* ~ लेखक *श्री वेंकटाध्वरी*
साभार सौजन्य ~ मुदित मिश्र विपश्यी(हिंदी/अंग्रेजी अनुवाद)
अंग्रेजी अनुवाद ~ डा. सरोजा रामानुजम, M.A., Ph.d, Siromani in Sanskrit 
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*श्री रामलीला*
साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥२॥
पृथ्वी पर साकेत, यानि अयोध्या, नामक एक शहर था जो वेदों में निपुण ब्राह्मणों तथा वणिकों के लिए प्रसिद्ध था एवं अजा के पुत्र दशरथ का धाम था जहाँ होने वाले यज्ञों में अर्पण को स्वीकार करने के लिए देवता भी सदा आतुर रहते थे और यह विश्व के सर्वोत्तम शहरों में एक था ॥२॥
There was a city called Ayodhya, on earth, which was shining with brahmins who were well-versed in vedas, and with merchants and was the place of abode of Dasaratha, the son of Aja, and it was always attended by the devas who assembled there to partake the offerings of the sacrifices and it was the first and foremost of all the cities on earth.(2)
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*श्री कृष्णलीला*
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥२॥
समुद्र के मध्य में अवस्थित, विश्व के स्मरणीय शहरों में एक, द्वारका शहर था जहाँ अनगिनत हाथी-घोड़े थे, जो अनेकों विद्वानों के वाद-विवाद की प्रतियोगिता स्थली थी, जहाँ राधास्वामी श्रीकृष्ण का निवास था, एवं आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसिद्ध केंद्र था ॥२॥
The city of Dwaraka, which was famous on earth as the noteworthy of the cities, abundant in horses and elephants, the ground of scholars who contest in debates, the place of residence of Sri Krishna, the Lord of Radha and the seat of learning for spiritual knowledge was situated in the midst of ocean.(2)
(क्रमशः)

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