#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
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दादू रहते पहते राम जन, तिन भी मांड्या झूझ ।
साचा मुंह मोड़े नहीं, अर्थ इता ही बूझ ॥६९॥
सँसारी जन तो हम से झगड़ा करते ही रहते था किन्तु शेष बचे राम के भक्त - जन भी युद्ध करने लगे हैं । तथापि हे सज्जनो ! सच्चा भक्त किसी सँप्रदायादि की ओर मुख नहीं करता, बस, इतने में ही हमारा भावार्थ समझ जाओ ।
प्रसंग - गलता से चार साधु इस ध्येय से महाराज के पास सांभर आये था कि इन्हें अपने वैष्णव सँप्रदाय में मिला लिया जाय । दादूजी महाराज ने उनका प्रस्ताव नहीं स्वीकार किया, तब वे रुष्ट होकर लड़ने लगे था । उन्हें ही ६९ वीं साखी कही थी ।
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*हरि भरोस*
दादू कांधे सबल के, निर्वाहेगा और ।
आसन अपने ले चल्या, दादू निश्चल ठौर ॥७०॥
हरि का भरोसा दिखा रहे हैं, हम तो सबल ईश्वर के ही आश्रय हैं, वे ही हमको अन्त तक निभावेंगे । उन्हीं का स्वरूप ज्ञान अब हमको निश्चल - धाम रूप अपने आसन पर ले चला है ।
(क्रमशः)
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