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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ४. राग कानड़ो =*
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(१)
*राम छबीले कौ ब्रत मेरैं ।*
*सुख तौ सुखी दुखी तौ हू सुख ज्यौं राषै त्यौं नेरैं ॥(टेक)*
मैने उस छविमय(सुन्दर) राम को निरन्तर स्मरण रखने का व्रत ले रखा है । वह सुख देता है तब तो मैं सुखी हूँ ही, परन्तु यदि वह दुःख भी देता है तो भी मैं अपने को सुखी ही मानती हूँ ॥टेक॥
*निश तौ निश बाशर तौ बासर जोई जोई कहैं सोई सोई बेरैं ।*
*आज्ञा मांहि एक पग ठाढी तब हाजरि जब टेरैं ॥१॥*
मैं दिन हो या रात्रि, वह जब जो जैसी आज्ञा देता है उस का पालन करना मैं अपना सौभाग्य समझती हूँ । मैं तो उसकी आज्ञा के पालन हेतु एक पैर से(सावधान होकर) खड़ी रहती हूँ । वह जब भी बुलाता है मैं तत्काल पहुँच जाती हूँ ॥१॥
*रीसि करहिं तौ हू रस उपजै प्रीति करहिं तौ भाग भलेरैं ।*
*सुन्दर धन के मन मैं ऐसी सदा रहूंगी करैं ॥२॥*
वह यदि कभी मुझ पर क्रोध करता है तब भी मुझको प्रसन्नता ही होती है । यदि वह कभी मुझसे प्रेम करता है तो मैं उस(प्रेम) को अपना सौभाग्य समझती हूँ । कोई भी सुहागन अपने पति के साथ ऐसा ही व्यवहार करनी चाहेगी । मैं सदा(निरन्तर) उसके निकट(आसपास) ही रहना चाहती हूँ ॥२॥
(क्रमशः)
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