शनिवार, 21 जुलाई 2018

= सुन्दर पदावली(३. राग कल्याण ४) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= ३. राग कल्याण =*
(४) 
(धीमा तिताला) 
*जग झूंठौ है झूंठौ सही ।* 
*पूरन ब्रह्म अकल अविनाशी ।* 
*मन वच क्रम ताकौं गही ॥(टेक)* 
"यह संसार मिथ्या है" - यही बात सत्य है । अतः तूँ उस सर्वव्यापक, अविनाशी तत्त्व का ही एकान्ततः मन कर्म एवं वाणी से निरन्तर चिन्तन कर ॥टेक॥ 
*उपजै बिनसै सौ सब बाजी बेद पुराननि मैं कही ।* 
*नाना बिधि के षेल दिषावै बाजीगर सांचौ उही ॥१॥* 
सभी वेद पुराण यह बात एकमत से स्वीकार करते हैं कि इस संसार में जो कुछ उत्पन्न एवं विनष्ट होता है वह सब अनित्य है, मिथ्या है । जो इन सब की रचना कर संसार में नाना खेल करता है वही सच्चा है, नित्य है अविनाशी है ॥१॥ 
*रज भुजंग मृगतृष्णा जैसी यह माया बिस्तरि रही ।* 
*सुन्दर बस्तु अखंड एक रस सो काहू बिरलै लही ॥२॥* 
यह समस्त संसार रज्जु में सर्प या मृग तृष्णा के जल जैसा प्रतीत होता हुआ सा मायामय है । महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं - इसके अतिरिक्त वह अखण्ड एकरस वस्तुतत्त्व लाखों में किसी एक साधक को ही प्राप्त हो पाता है ॥२॥
(क्रमशः)

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