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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ३. राग कल्याण =*
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(४)
(धीमा तिताला)
*जग झूंठौ है झूंठौ सही ।*
*पूरन ब्रह्म अकल अविनाशी ।*
*मन वच क्रम ताकौं गही ॥(टेक)*
"यह संसार मिथ्या है" - यही बात सत्य है । अतः तूँ उस सर्वव्यापक, अविनाशी तत्त्व का ही एकान्ततः मन कर्म एवं वाणी से निरन्तर चिन्तन कर ॥टेक॥
*उपजै बिनसै सौ सब बाजी बेद पुराननि मैं कही ।*
*नाना बिधि के षेल दिषावै बाजीगर सांचौ उही ॥१॥*
सभी वेद पुराण यह बात एकमत से स्वीकार करते हैं कि इस संसार में जो कुछ उत्पन्न एवं विनष्ट होता है वह सब अनित्य है, मिथ्या है । जो इन सब की रचना कर संसार में नाना खेल करता है वही सच्चा है, नित्य है अविनाशी है ॥१॥
*रज भुजंग मृगतृष्णा जैसी यह माया बिस्तरि रही ।*
*सुन्दर बस्तु अखंड एक रस सो काहू बिरलै लही ॥२॥*
यह समस्त संसार रज्जु में सर्प या मृग तृष्णा के जल जैसा प्रतीत होता हुआ सा मायामय है । महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं - इसके अतिरिक्त वह अखण्ड एकरस वस्तुतत्त्व लाखों में किसी एक साधक को ही प्राप्त हो पाता है ॥२॥
(क्रमशः)
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