शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

= सुन्दर पदावली(४. राग कानड़ो ४) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= ४. राग कानड़ो =*
(४) 
*हरि सुख की महिमां शुक जांनै ।* 
*इंद्रपुरी शिव ब्रह्मलोक पुनि बैकुंठादिक नजरि न आंनै ।(टेक)* 
महात्मा श्री सुन्दरदासजी का कहना है - 
भगवान् के समीप रहने के सुख की महिमा व्यासपुत्र श्रीशुकदेव मुनि ही जानते हैं, जिनने भगवत् पुराण की रचना की है । उनकी दृष्टि में इन्द्रलोक, ब्रह्मलोक या वैकुण्ठलोक में रहने के सुख का कोई महत्व नहीं है ॥टेक॥ 
*ता सुख मगन रहैं सनकादिक नारद हू निर्मल गुन गांनैं ।* 
*ऋषभदेव दत्तात्रय तन मैं बामदेव महा मुक्त बषानैं ॥१॥* 
भगवान् के इस सामीप्य सुख में मग्न रहकर सनक, सनन्दन आदि ऋषियों ने या नारद आदि मुनियों ने इस सामीप्य सुख के महत्व की निर्दुष्ट रीति से व्याख्या की है । भागवत पुराण में ऋषभदेव वामदेव तथा दत्तात्रेय आदि ऋषियों की 'महामुक्त' बताते हुए अतिशय प्रशंसा की गयी ॥१॥ 
*ता सुख कौ क्षय होइ न कबहूं सदा अखंडित संत प्रवांनैं ।* 
*सुन्दरदास आस वा सुख की प्रगट होइ तबही मन मांनैं ॥२॥* 
उस सुख का कभी नाश नहीं होता । वह अक्षुण्ण है - ऐसा सन्तजन कहते हैं । महात्मा श्रीसुन्दरदासजी भी उसी सुख की प्रतीक्षा कर रहे हैं । वह प्रत्यक्षतः हमको भी मिले तभी हम भी इस बात पर विश्वास कर सकते हैं ॥२॥ 
(क्रमशः)

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