शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

= गर्व गंजन का अंग ४३(१७/२०) =

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*शशिहर सूर, सूर तैं शशिहर, परगट खेलै रे ।*
*धरती अंबर, अंबर धरती, दादू मेलै रे ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*गर्व गंजन का अंग ४३*
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दर्प हर्या दरियाव का, उडग उदधि आरोग । 
रज्जब रज सु कहां रही, पड्या अभोगी भोग ॥१७॥ 
अगस्त्य ऋषि रूप तारे ने समुद्र को पान करके समुद्र का गर्व नष्ट कर दिया, जब न पान करने वाले के द्वारा भी पान किया गया तब समुद्र का रजोगुण रूप गर्व कहाँ रहा । 
नाल खाल नौसौ लियूं, नदी नाथ गर्जाय । 
सो अगस्त्य अवचन किया, मत कोई गर्वाय ॥१८॥ 
नौसै नदी नालों को लेकर समुद्र गर्जना करता है किन्तु उसको भी अगस्त्य पान कर गये, इसलिये किसी को भी गर्व नहीं करना चाहिये । 
एक सूर तारे अनन्त, देखी दर्श दब जाँहिं । 
रज्जब गर्व न कीजिये, बैठसु विधु माँहिं ॥१९॥ 
हे चन्द्रमा ! तुम तारों के समूह में बैठ कर गर्व मत करो, एक सूर्य का दर्शन करते ही अनन्त तारे दिखना बन्द हो जाते हैं । 
परिवार पुरि तारे अनन्त, चंद रहै तिन माँहिं । 
रज्जब पकड़या राहु जब, सगों सर्या कुछ नाँहिं ॥२०॥ 
अनन्त तारों के समुह रूप परिवार में चन्द्रमा रहता है, उसको भी जब राहु पकड़ता है, तब उन तारे रूप सम्बन्धियों से चन्द्रमा की सहायता रूप कुछ भी काम नहीं होता ।
(क्रमशः)

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