रविवार, 8 जुलाई 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ३१/३३) =

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*शूरातन का अँग २४*
शूरा होइ सु१ मेर२ उलँघे, सब गुण बँध्या छूटे ।
दादू निर्भय ह्वै रहे, कायर तिणा३ न टूटे ॥३१॥
वीर होता है वह घर, नारी आदि की आसक्ति आदि रूप गुणों से बंधा हुआ होने पर भी उन्हें छोड़कर सुमेरू रूप युद्ध के समय अपनी सेना की सीमा२ को सम्यक्१ उल्लँघन करके शत्रु - दल में निर्भय होकर युद्ध करता रहता है किन्तु कायर से एक तृण३ भी नहीं टूटता । वैसे ही साधक अहँकारादि गुणों से बंधा हुआ होने पर भी भक्ति आदि के बल से छूट जाता है और घँटे - दो घँटे भजन करने की सीमा२ को सम्यक्१ लाँघकर निर्भयता से निरन्तर भजन करता रहता है किन्तु विषयी से विषय - राग रूप तृण भी नहीं टूटता ।
.
*शूर सती साधु निर्णय*
सर्प केशरि काल कुंजर, बहु जोध मारग माँहिं ।
कोटि में कोई एक ऐसा, मरण आसंघ जाँहिं ॥३२॥
३२ - ३७ में शूर सती साधु का परिचय दे रहे हैं, प्रभु प्राप्ति मार्ग के मध्य सँसार - वन में सँशय रूप सर्प, क्रोध रूप सिंह, काम रूप हाथी आदि काल के समान महा बलवान् बहुत योद्धा विघ्नरूप हैं । अत: ऐसा साधक शूर कोटि में कोई एक ही होगा, जो मृत्यु को स्वीकार करके इनसे सँघर्ष करता हुआ सँसार - वन से पार परमात्मा के पास चला जाय ।
.
दादू जब जागे तब मारिये, वैरी जिय के साल । 
मनसा डायनि काम रिपु, क्रोध महाबली काल ॥३३॥ 
साँसारिक वासना रूप डाकिनी और काल के समान महा बलवान् काम - क्रोध रूप शत्रुओं को जब भी हृदय में उत्पन्न हों, तब ही वैराग्य, वस्तु - विचार और क्षमा से मार देने चाहिये । क्योंकि ये जीव के लिए महाक्लेश रूप हैं । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें