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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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(११)
(तिताला)
*नाम निरंजन लेत हैं रे और कछू न सुहाइ ।*
*मनसा बाचा कर्मना सब छाडी आन उपाय ॥२॥*
अब मैं निरन्तर एकमात्र निराकार ब्रह्म की ही उपासना करता हूँ तथा अन्य उपायों का मनसा वाचा कर्मणा - सर्वथा त्याग कर दिया है ॥२॥
*मनका भरम बिलाइया रे भटकत फिरता दूरि ।*
*उलटि समाना आप मैं तब प्रगट्या राम हजूरि ॥३॥*
इस प्रकार, मैंने अपने मन से उपासना से सम्बद्ध अन्य सभी भ्रम निकाल दिये हैं । इससे मेरा संसार में भटकना मिट गया । अपितु पुनः लौटकर मैंने आत्मनिरीक्षण में ही अपना मन लगाया । तब मुझ को 'राम' का साक्षात्कार हुआ ॥३॥
*पिंड ब्रह्मण्ड जहां तहां रे वा बिन और न कोई ।*
*सुन्दर ताका दास है जातैं सब पैदाइस होइ ॥४॥*
समस्त पिण्डों या ब्रह्माण्डों में एकमात्र उन भगवान् की ही सत्ता है अन्य की नहीं । श्री सुन्दरदासजी कहते हैं - मैं उनका ही दास हूँ जिनसे यह समस्त संसार उत्पन्न हुआ है ॥४॥
(क्रमशः)
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