卐 सत्यराम सा 卐
परम कथा उस एक की, दूजा नांही आन ।
दादू तन मन लाइ कर, सदा सुरति रस पान ॥ २३ ॥
टीका - हे जिज्ञासुओं ! सच्चे संतों के द्वारा ही परमेश्वर की परम कथा, कहिये श्रेष्ठ उपदेश प्राप्त होता है । वही परम कथा है, सो संत ही सुनाते हैं । इसलिये संतों की संगति में तन, मन को स्थिर करके सत् चित् आनन्द में ही वृत्ति लगाइये ॥ २३ ॥
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प्रेम कथा हरि की कहै, करै भक्ति ल्यौ लाइ ।
पीवै पिलावै राम रस, सो जन मिलियो आइ ॥ २४ ॥
टीका - हे परमेश्वर ! हे हरि ! आपकी प्रेम भरी कथा नित्य प्रति कहें, स्वयं राम - रस को पीवें और जिज्ञासुओं को पिलावें । इस प्रकार आपकी भक्ति में लय होकर रत्त रहने वाले संतों को ही हमको आप मिलाओ, आपसे यही मांगते हैं ॥ २४ ॥
कहै कबीर हरि वीनती, सांची संगति देहि ।
जान बूझ साचहि तजै, करै झूठ सूं नेह ॥
झूंठ न कबहूँ आदरै, बनवासी जिमि गेह ।
ताकी संगति रामजी, सुपने हु जनि देह ॥
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दादू पीवै पिलावै राम रस, प्रेम भक्ति गुण गाइ ।
नित प्रति कथा हरि की करै, हेत सहित ल्यौ लाइ ॥ २५ ॥
टीका - हे प्रभु ! आपके सच्चे संत अनन्य भक्ति रूपी अमृत को आप तो पीते ही हैं और जिज्ञासुओं को भी पिलाते हैं । ऐसे आप के प्यारे संत ही हमको आकर मिलें और फिऱ आपकी प्रतिदिन कथा अन्तःकरण के हित के सहित कहने वाले संतों की संगति से ही हम कल्याण को प्राप्त होंगे । ऐसे संतों से ही आप हमें मिलावें ॥ २५ ॥
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
चित्र सौजन्य ~ मुक्ता अरोड़ा स्वरूप निश्चय
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