गुरुवार, 26 जुलाई 2018

= १९ =

卐 सत्यराम सा 卐
*काया शून्य पंच का बासा,* 
*आत्म शून्य प्राण प्रकासा ।*
*परम शून्य ब्रह्म सौं मेला,* 
*आगे दादू आप अकेला ॥* 
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साभार ~ Dhaval Parmar

मैंने एक ताओइस्ट चित्रकार की कहानी पढ़ी है। मैंने पढ़ा है कि एक ताओ गुरु ने अपने शिष्यों को कहा कि तुम एक चित्र बना लाओ। उन्होंने पूछा कि कोई थीम, कोई विषय दे दें। तो उसने कहा, तुम एक चित्र बना लाओ कि गाय घास चर रही है। वे चित्र बनाकर ले आए। सभी अच्छे—अच्छे चित्र बनाकर ले आए थे। लेकिन एक साधु जो चित्र बनाकर लाया था, उसमें जरा चौंकने वाली बात थी। क्योंकि वह कोरा कागज ही ले आया था।
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गुरु ने पूछा कि क्या बना नहीं पाए? उसने कहा कि नहीं, चित्र बना है, देखें। फिर गुरु ने उसके कागज की तरफ देखा, और शिष्यों ने भी कागज की तरफ देखा; फिर सबने उसकी तरफ देखा और पूछा कि गाय कहा है! तो उसने कहा, गाय घास चरकर जा चुकी है। उन्होंने पूछा कि घास कहां है? तो उसने कहा कि घास गाय चर गई। तो उन्होंने पूछा, इसमें फिर क्या बचा? तो उसने कहा, *जो गाय के पहले भी था और घास के पहले भी था, और गाय के बाद भी बचता है और घास के बाद भी बचता है, वही मैं बना लाया हूं।* लेकिन वे सब कहने लगे, यह कोरा कागज है! पर उसने कहा कि यही बचता है—यह कोरापन।
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एक कमरा है, खाली है, कुछ भी सामान नहीं है। वह जो कमरे का खालीपन है, वह पूरा का पूरा व्याप्त किए है कमरे को। उचित तो यही होगा कि जब कमरा नहीं था, तब भी वह खालीपन था। पीछे हमने दीवारें उठाकर उस खालीपन को चारों तरफ से बंद किया है। कमरा नहीं था, तब भी वह खालीपन था। कमरा नहीं होगा, तब भी वह खालीपन होगा। कमरा है, तब भी वह खालीपन है। कमरा बना है, मिटेगा, कभी नहीं था, कभी नहीं हो जाएगा; पर वह जो *खालीपन है, वह जो स्पेस है, वह जो अवकाश है, वह जो आकाश है—वह था, है, रहेगा।*
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इसीलिए बुद्ध जैसे परम आस्तिक ने, परमात्मा है, ऐसा शब्द कभी प्रयोग नहीं किया। नासमझ समझे कि नास्तिक है यह आदमी। लेकिन बुद्ध को लगा कि यह तो बड़ी ही भूल भरी बात कहनी है कि परमात्मा है। क्योंकि है सिर्फ उसी के लिए कहना चाहिए, जो नहीं है भी हो जाता है। आदमी है, ठीक है बात। उस पर है हम लगा सकते हैं। है उस पर आई हुई घटना है, कल खो जाएगी। लेकिन परमात्मा है, यह कहना ठीक नहीं है। गॉड इज, कहना ठीक नहीं है। क्योंकि गॉड का तो मतलब ही इजनेस है। जो है ही, उसके लिए है कहना, बड़ा कमजोर शब्द उपयोग करना है, गलत शब्द उपयोग करना है, पुनरुक्ति है।
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खाली जगह है ही। कमरा नहीं था, तब भी थी। फिर कमरे में हम फर्नीचर ले आए, फिर कमरे में हमने तस्वीरें लगा दीं, फिर कमरे में हम आकर बैठ गए। कमरा पूरा सज गया, भर गया। अब इस कमरे में दो चीजें हैं। एक तो वह खालीपन, जो सदा से था; और एक यह भरापन, जो सदा से नहीं था। लेकिन बड़े मजे की बात है कि कमरे का खालीपन हमें कभी दिखाई नहीं पडता; कमरे का भरापन दिखाई पड़ता है। कमरे में वही दिखाई पड़ता है, जो भरा हुआ है। वह नहीं दिखाई पड़ता, जो खाली है। किसी भी कमरे में आप प्रवेश करेंगे, तो वही दिखाई पड़ता है, जो वहा है। वह नहीं दिखाई पडता, जो वहा सदा था। वह नहीं दिखाई पड़ता। वह अदृश्य भी है। अगर खालीपन का भी पता चलता है, तो कहना चाहिए कि भरेपन के रिफरेंस में पता चलता है।
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यह कुर्सी रखी है, तो इसके आस—पास खाली जगह मालूम पड़ती है। इस कुर्सी के आस—पास खाली जगह मालूम पड़ती है। *खाली जगह के बीच में यह कुर्सी मालूम नहीं पड़ती। असलियत यही है कि खालीपन के बीच में यह कुर्सी रखी है। कुर्सी हटाई जा सकती है, खालीपन हटाया नहीं जा सकता, भरा जा सकता है, हटाया नहीं जा सकता। आप एक कमरे से कुर्सी बाहर निकाल ले सकते हैं, क्योंकि कुर्सी कमरे के अस्तित्व का हिस्सा नहीं है। लेकिन कमरे से खालीपन नहीं निकाल सकते। ज्यादा से ज्यादा कमरे में सामान भरकर खालीपन को दबा सकते हैं।* 
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अगर कमरे में से सब चीजें निकाल ली जाएं, तो आप कहेंगे, यहां तो कुछ भी नहीं है। और अगर कमरे से सब चीजें निकाल ली गई हों, तो आपको सिर्फ कमरे की दीवारें दिखाई पड़ेगी। अगर दीवारें भी निकाल ली जाएं, तो आप कहेंगे, यहां कमरा ही नहीं है। लेकिन दीवारें कमरा नहीं हैं। दीवारों के बीच में जो खाली जगह है, वही कमरा है। अंग्रेजी का शब्द रूम बहुत अच्छा है। रूम का मतलब होता है, खाली जगह। रूम का मतलब ही होता है, खाली जगह। पर वह खाली जगह दिखाई भी नहीं पड़ती, खयाल में भी नहीं आती, क्योंकि खाली जगह का हमें स्मरण ही नहीं है। असल में खाली जगह इतनी सदा से है कि उसे हमें देखने की जरूरत ही नहीं पड़ी है।
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*ठीक ऐसे ही, यह जो विराट आकाश है, यह जो स्पेस है अनंत, यह जो खाली जगह है, यह जो एंपटीनेस है फैली हुई अनंत तक, जिसका कोई ओर—छोर नहीं है, जो कहीं शुरू नहीं होती और कहीं समाप्त नहीं होती।*
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आप ध्यान रखें, खाली चीज कभी भी शुरू और समाप्त नहीं हो सकती, सिर्फ भरी चीज शुरू और समाप्त हो सकती है। खालीपन की कोई बिगनिंग और कोई एंड नहीं हो सकता। कमरे के खालीपन की कौन—सी शुरुआत है और कौन—सा अंत है? हा, दीवार का ओर।. होता है, सामान का होता है, कमरे का नहीं होता। *स्पेस की कोई सीमाएं नहीं हैं, आकाश का अर्थ ही है कि जिसकी कोई सीमा नहीं है। यह जो असीम फैला हुआ है, यह सत है। और इस असीम के बीच में बहुत कुछ उठता है, बनता है, निर्मित होता है, बिखरता है, वह असत है।*
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वृक्ष बने, खालीपन थोड़ी देर के लिए हरा हुआ। फूल खिले, खालीपन थोड़ी देर के लिए सुगंध से भरा। फिर फूल गिर गए, फिर वृक्ष गिर गया, खालीपन फिर अपनी जगह है। और जब वृक्ष उठा था और फूल खिले थे, तब भी खालीपन में कोई अंतर नहीं पड़ा था; वह वैसा ही था।
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चीजें बनती हैं और मिटती हैं। जो बनता है और मिटता है, वह स्थूल है, वह दिखाई पड़ता है। जो नहीं बनता, नहीं मिटता, वह सूक्ष्म है, वह अदृश्य है। सूक्ष्म कहना भी ठीक नहीं है। लेकिन मजबूरी में कृष्ण ने सूक्ष्म का प्रयोग किया है। उचित नहीं है, लेकिन मजबूरी है। कोई और उपाय नहीं है। असल में जब हम कहते हैं सूक्ष्म, तो हमारा मतलब यह होता है, स्थूल का ही कोई हिस्सा। जब हम कहते हैं छोटा, तो मतलब होता है कि बड़े का ही कोई हिस्सा। 
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जब हम कहते हैं बहुत सूक्ष्म, तो हमारा मतलब होता है कि बहुत कम स्थूल। बाकी मनुष्य की भाषा में सूक्ष्म भी स्थूल से ही जुड़ा है। हम कितना ही कहै सूक्ष्मातिसूक्ष्म, तो भी स्थूल से ही जुड़ा है। आदमी की भाषा द्वंद्व से बनी है। उसमें पेयर्स हैं, उसमें दो—दो चीजों के जोड़े हैं।
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*हमने जितने शब्द बनाए हैं, वे बड़े मजेदार हैं। हम उलटे से उलटा शब्द भी प्रयोग करें, तो भी कोई अंतर नहीं पड़ता। वह उलटे से उलटा भी हमारे पुराने शब्द से ही जुड़ा होता है। अगर हम कहें कि वह असीम है, तो भी हमें सीमा से ही वह शब्द बनाना पड़ता है।*
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अब यह बडे मजे की बात है कि सीमा में असीम का कोई भाव नहीं होता। लेकिन असीम में सीमा का भाव होता है। हम कितनी ही कल्पना करें असीम की, हम ज्यादा से ज्यादा बहुत बड़ी सीमा की कल्पना करते हैं। हम कितना ही सोचें, तो हमारा मतलब यही होता है कि सीमा और आगे हटा दो, और आगे हटा दो, और आगे हटा दो। लेकिन सीमा होगी ही नहीं, यह हमारा विचार नहीं सोच पाता। वह इनकसिवेबल है। उसकी कोई चितना नहीं हो सकती असीम की।
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*जब हम कहते हैं, कमरे में खालीपन है, तो उसका मतलब हमारे मन में यह होता है कि कमरे में खालीपन भरा है। तो हम एंपटीनेस को भी वस्तु की तरह उपयोग करते हैं, खालीपन भरा है।* जैसे खालीपन कोई चीज है। जब कि खालीपन का मतलब न भरा होना है, जहां कुछ भी नहीं है। लेकिन अगर हम कुछ भी नहीं का भी प्रयोग करें, तो हम कुछ भी नहीं का भी वस्तु की तरह प्रयोग करते हैं। अंग्रेजी में शब्द है नथिंग, वह बना है नो—थिग से। नथिंग भी कहना हो—नही कुछ—तो भी थिंग, वस्तु उसमें लानी पड़ती है। बिना वस्तु के हम सोच ही नहीं सकते; बिना स्थूल के हम सोच ही नहीं सकते।
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लोग पूछते हैं कि क्या विज्ञान कभी परमात्मा को जान पाएगा? जिसे भी विज्ञान जान लेगा, वह परमात्मा नहीं होगा। *क्योंकि परमात्मा से अर्थ ही है कि जो जानने की पकड़ में नहीं आता। किसी दिन विज्ञान की प्रयोगशाला अगर परमात्मा को पकड़ लेगी, तो वह पदार्थ हो जाएगा।* असल में जहां तक परमात्मा पकड़ में आता है, उसी का नाम पदार्थ है। और जहां परमात्मा पकड़ में नहीं आता, वहीं परमात्मा है।
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एक कमरे में हम जाएं, वहा फूल रखा है। फूल’ सुबह ठीक है, सांझ मुरझा जाएगा। उसी फूल के नीचे शंकर जी की पिंडी रखी है, पत्‍थर रखा है। वह सुबह भी था, सांझ भी होगा। लेकिन सौ वर्ष, दो सौ वर्ष, तीन सौ वर्ष, हजार वर्ष—बिखर जाएगा। फूल एक दिन में बिखर गया। पत्थर था, हजारों वर्ष में बिखरा। इससे अंतर नहीं पड़ता। *कमरे में सिर्फ एक चीज है जो नहीं बिखरेगी, वह कमरे का कमरापन है, रूमीनेस है। वह जो खालीपन है, वह भर नहीं बिखरेगा। वही सूक्ष्म है, वही सत है। बाकी कमरे में जो भी है, वह सब बिखर जाएगा।*
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सूक्ष्म का अर्थ ठीक से खयाल में ले लेना जरूरी है। क्योंकि जो सूक्ष्म है, वही सत है। जो पकड़ में आता है, वह असत होगा। वह आज होगा, कल नहीं होगा। जो पकड़ में नहीं आता, वही सत है। कृष्ण इस कोरेपन को सूक्ष्म कह रहे हैं। जो सब लहरों के उठ जाने, गिर जाने पर बच जाता है। और जो सदा बच जाता है, वही सत है।
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*ओशो – गीता-दर्शन – भाग एक*

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