रविवार, 22 जुलाई 2018

= सुन्दर पदावली(३. राग कल्याण ५) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= ३. राग कल्याण =*
(५) 
(तिताला)
*तत थेई तत थेई तत थेई ता।* 
*धी नागड धी नागड धी नागड धी मा धी ।(टेक)* 
*थुंगनि थुंगनि थुंगनि थुंगा त्रिघट उघटितत तुरीय उतंगा ॥१॥* 
*तन नन तन नन तन नन तन्ना गुप्ता गगनवत आतम भिन्ना ॥२॥* 
*तत् तत्वं तत् तत्वं तत् सो त्वं असि साम वेद यौं वदत तत्वमसि ॥३॥* 
*अद्भुत निरतत नासत मोहं सुंदर गावत सोहं सोहं ॥४॥* 
"वह ब्रह्म निश्चित रूप से आप ही हो" - ऐसी बुद्धि अन्तःकरण की असम्प्रज्ञात समाधि में गम्भीर अवस्था की द्योतक है । "काया एवं माया हेय है" - अर्थात् स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण - ये तीनों शरीर नाशवान् हैं अतः ये तीनों ही नष्ट हो जायँ तब वह साधक तुरीय अवस्था में पहुँचने योग्य होता है । प्रकट(दृश्यमान) शरीर परब्रह्म नहीं है, यह तो मायामात्र है तथा ब्रह्म आकाश के तुल्य अतिसूक्ष्म एवं सर्वव्यापक है - सामवेद में 'तत्त्वमसि' का यही अर्थ कहा गया है । वह आश्चर्यमत तत्त्व मोह का नाशक है । श्रीसुन्दरदास जी आदि सन्तजन उसी तत्त्व का निरन्तर ध्यान करते हैं ॥२३॥ 
(क्रमशः)

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