रविवार, 22 जुलाई 2018

= गर्व गंजन का अंग ४३(१/४) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*चलसी गगन धरणि सब चलसी,* 
*चलसी पवन अरु पानी ।*
*चलसी चंद सूर पुनि चलसी, चलसी सबै उपानी ॥* 
*चलसी चंचल निहचल रहसी, चलसी जे कुछ कीन्हा ।*
*दादू देख रहै अविनाशी, और सबै घट खीना ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*गर्व गंजन का अंग ४३*
इस अंग में "गर्व करना उचित नहीं यह तथा गर्व को भगवान भी नष्ट करते हैं" यह बता रहे हैं :-
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आदित्य अग्नि इन्दु अरु उडगण, दामिनि दमन सु मूंदि१ । 
रज्जब जगत ज्योति बल भागे, लाई जींगन पूंदि२ ॥१॥ 
सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, तारे और बिजली की चमक, ये जो जगत में ज्योतियाँ हैं, उनके बढ़ते गर्व की रोक१ करने के लिये ईश्वर ने जुगुनु की गुदा२ में ज्योति रख दी है ।
रे रे केशर अगर तू, मतकर मान गुमान । 
गहरी बास सु गुदा में, मैल मँजारी जान ॥२॥ 
अरी केशर तू अपनी सुगन्ध का अभिमान मत कर तथा अरी अगर तू भी अपनी सुगंध का गर्व मत कर, बिल्ली के गुदा में होने वाले फोड़े के पीव में भी बहुत गहरी सुगंध होती है । 
ब्रह्मा शारदा आखिर१ धर, मान न करियो कोय । 
मुये श्वान के पूंद२ में, चारि वेद ध्वनि होय ॥३॥ 
ब्रह्मा और सरस्वती आदि वेदादि के अक्षर समूह को धारण करके गर्व न करें, मरे हुये कुत्ते की गुदा में भी चारो वेदों की ध्वनि होती है, दृष्टांत कथा - 
तत्वा जीवा नामक ब्राह्मण कबरी के शिष्य हो गये थे इससे ब्राह्मणों ने उन्हें शूद्र कहा था, तत्वा जीवा ने कहा - ब्राह्मण किसे कहते हैं । ब्राह्मण बोले "वेद वेत्ता को" तब वहाँ एक मरा हुआ कुत्ता पड़ा था तत्त्वा जीवा ने अपनी योग शक्ति से उसकी गुदा से -चारों वेदो के मंत्र उच्चारण कराकर ब्राह्मणों को चुप कर दिया था । ब्राह्मणों के विवाद करने पर गोरखनाथ ने भी ऐसा किया था । 
गिरिवर गर्व न कीजिये, सप्त धातु धन जोर । 
ताँबा निकसे पंख में, लागी पूंदन१ मोर ॥४॥ 
हे पर्वत ! तू अपने में होने वाली रूप धातु धन की शक्ति का गर्व न कर, देखो, मोर की गुदा१ में लगी हुई मोर की पंखो से भी ताम्र निकलता है ।
(क्रमशः)

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